सबसे अहम बदलाव है ‘फ्लोर वेज’ या न्यूनतम वेतन में। सरकार अब राष्ट्रीय स्तर पर एक न्यूनतम वेतन तय करेगी, जिसे फ्लोर वेज कहा जाएगा। इसका मतलब है कि भारत का कोई भी राज्य इस न्यूनतम सीमा से कम वेतन तय नहीं कर सकता। अगर किसी राज्य में पहले से ही मजदूरी दर फ्लोर वेज से अधिक है, तो उसे कम नहीं किया जा सकता। यह नियम न सिर्फ संगठित क्षेत्र बल्कि असंगठित क्षेत्रों में काम करने वाले हर कर्मचारी पर लागू होगा।
न्यूनतम वेतन कैसे तय होगा?
नए नियमों के अनुसार, न्यूनतम वेतन सिर्फ रोजमर्रा की जरूरतों तक सीमित नहीं है। इसमें एक कर्मचारी और उसके परिवार के लिए भोजन, कपड़े, मकान, बच्चों की शिक्षा, मेडिकल खर्च, बिजली और ईंधन के खर्च, तथा वृद्धावस्था की सुरक्षा शामिल है। इन सभी खर्चों को मिलाकर तय किया गया न्यूनतम वेतन कंपनी को कर्मचारियों को देना अनिवार्य होगा।
कौशल और जगह के हिसाब से अलग दरें
सरकार ने यह भी स्पष्ट किया है कि सभी कर्मचारियों का न्यूनतम वेतन समान नहीं होगा। इसे काम की कुशलता और भौगोलिक क्षेत्र के आधार पर तय किया जाएगा। श्रमिकों को चार श्रेणियों में बांटा गया है। अकुशल (Unskilled), अर्ध-कुशल (Semi-Skilled), कुशल (Skilled) और अति-कुशल (Highly Skilled)।
शहरों को मेट्रो, टियर-2 और ग्रामीण क्षेत्रों में बांटा गया है। इसका मतलब है कि मेट्रो शहर में कुशल काम करने वाले कर्मचारियों का न्यूनतम वेतन, ग्रामीण क्षेत्र में अकुशल मजदूर से अधिक होगा, लेकिन दोनों ही मामलों में यह फ्लोर वेज से कम नहीं होगा।

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