भारत ने चल दी बड़ी चाल, अब खत्म होगी चीन की दादागिरी!

नई दिल्ली। दुनिया की आधुनिक तकनीक चाहे वह इलेक्ट्रिक वाहन हों, सोलर पैनल हों या अत्याधुनिक रक्षा उपकरण एक चीज पर टिकी है: रेयर अर्थ मिनरल्स। आज इन मिनरल्स की सप्लाई और प्रोसेसिंग पर सबसे बड़ा नियंत्रण चीन के पास है, जिसके कारण वह वैश्विक बाजार में अपनी शर्तें मनवाता रहा है। लेकिन अब भारत ने एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए इस वर्चस्व को चुनौती देने की तैयारी कर ली है।

₹7,000 करोड़ की नई योजना: भारत की बड़ी रणनीतिक पारी

मिडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, केंद्र सरकार रेयर अर्थ परमानेंट मैग्नेट्स के लिए एक नई प्रोत्साहन योजना को मंजूरी देने जा रही है। यह योजना लगभग ₹7,000 करोड़ के निवेश की मांग करेगी, जो पहले प्रस्तावित राशि से तीन गुना से भी अधिक है। 

यह कदम भारत को इलेक्ट्रिक वाहनों, नवीकरणीय ऊर्जा और डिफेंस सेक्टर के लिए जरूरी सामग्रियों की घरेलू उपलब्धता सुनिश्चित करने में मदद करेगा। इससे भारत न सिर्फ आयात पर निर्भरता कम करेगा, बल्कि वैश्विक सप्लाई चेन में अपनी भूमिका मजबूत कर सकेगा।

चीन क्यों बन गया था ‘रेयर अर्थ’ का दादागीर?

चीन आज विश्व की 60 से 70% रेयर अर्थ का उत्पादन करता है और इसकी प्रोसेसिंग पर उसका लगभग 90% नियंत्रण है। जब उसने अप्रैल में निर्यात नियम कड़े किए, तो दुनिया भर में सप्लाई चेन डगमगा गई थी। यही वजह है कि चीन इन खनिजों को भूराजनीतिक हथियार की तरह इस्तेमाल कर रहा था।

भारत भी अपनी जरूरत का 60 से 65% हिस्सा चीन से आयात करता है। 2023-24 में भारत की रेयर अर्थ आयात मात्रा 17% बढ़कर 2,270 टन तक पहुंच गई। छोटी योजनाओं से आत्मनिर्भरता का लक्ष्य हासिल करना मुश्किल था, इसलिए बड़े निवेश की मांग लंबे समय से महसूस की जा रही थी।

भविष्य की तैयारी: निर्भरता कम करने की नई दिशा

सरकार केवल खनिजों तक सीमित योजना नहीं बना रही है। Synchronous Reluctance Motors जैसी उन्नत तकनीकों पर रिसर्च को भी फंडिंग दी जा रही है, जो विकसित हो जाने पर रेयर अर्थ मैग्नेट्स की आवश्यकता को काफी कम कर सकती हैं। यह भारत को लंबे समय में तकनीकी आत्मनिर्भरता की ओर ले जाएगा।

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