यह ऐतिहासिक आदेश न्यायमूर्ति अजीत कुमार ने पुलिस निरीक्षक जगदंबा सिंह व अन्य याचियों की याचिका पर सुनवाई के दौरान दिया। याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता विजय गौतम और अधिवक्ता श्याम शरण ने कोर्ट के समक्ष दलीलें प्रस्तुत कीं।
क्या है मामला?
याचिकाकर्ता पुलिसकर्मियों की नियुक्ति वर्ष 2001 में दरोगा (सब-इंस्पेक्टर) पद पर हुई थी। वर्ष 2016 में इन्हें पदोन्नति देकर पुलिस निरीक्षक बनाया गया। बावजूद इसके, इन्हें 5400 रुपये ग्रेड-पे नहीं दिया जा रहा था। याचियों ने आरोप लगाया कि शासनादेशों और पूर्व में दिए गए कोर्ट के आदेशों के बावजूद विभाग ने उनकी ट्रेनिंग अवधि को सेवा में नहीं जोड़ा, जिससे वे द्वितीय प्रोन्नति वेतनमान से वंचित रह गए।
याचिका में लाल बाबू शुक्ल बनाम उत्तर प्रदेश सरकार केस का भी हवाला दिया गया, जिसमें हाईकोर्ट पहले ही स्पष्ट कर चुका है कि पुलिस कर्मियों की ट्रेनिंग अवधि को नियमित सेवा में जोड़ा जाए और उसी आधार पर प्रोन्नति वेतनमान दिया जाए।
कोर्ट का सख्त रुख
कोर्ट ने कहा कि 26 अगस्त 2015 के शासनादेश के अनुसार, ऐसे सभी राज्य कर्मचारी जो सीधी भर्ती के तहत नियुक्त हुए हैं और जिन्होंने प्रथम नियुक्ति तिथि से 16 वर्ष की सेवा पूरी कर ली है, वे द्वितीय प्रोन्नति वेतनमान पाने के हकदार हैं। इस आधार पर कोर्ट ने विभागीय अधिकारियों को निर्देश दिया कि वे छह माह के भीतर नियमानुसार फैसला लें और संबंधित पुलिसकर्मियों को लाभ प्रदान करें।
पुलिसकर्मियों के लिए बड़ी राहत
इस फैसले को यूपी पुलिसकर्मियों के लिए बड़ी राहत माना जा रहा है। इससे न सिर्फ 2001 बैच के दरोगाओं को लाभ मिलेगा, बल्कि आने वाले समय में अन्य बैचों के पुलिसकर्मी भी इस आदेश का लाभ लेने के लिए आगे आ सकते हैं।
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