कोर्ट का अहम फैसला
यह आदेश न्यायमूर्ति जेजे मुनीर की एकल पीठ ने आगरा निवासी लवकुश तिवारी और अन्य 1485 ग्राम चौकीदारों द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया। याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया था कि वे 1987 से सेवा में हैं, और मात्र ₹2500 मासिक मानदेय पर कार्य कर रहे हैं, जो संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 के उल्लंघन जैसा है। उन्होंने दावा किया कि वे भी पुलिस की तरह निगरानी और सूचना देने का काम करते हैं, इसलिए समान वेतन के पात्र हैं।
कोर्ट की टिप्पणी
कोर्ट ने कहा, "ग्राम चौकीदारों को पुलिस की तीसरी आंख कहा जा सकता है, लेकिन सेवा शर्तों के आधार पर उन्हें पुलिस के समान वेतन नहीं दिया जा सकता।" न्यायमूर्ति मुनीर ने यह भी जोड़ा कि जब तक किसी कर्मचारी को दिया जा रहा पारिश्रमिक मनमाना, भेदभावपूर्ण या बेगार जैसा न हो, तब तक न्यायालय वेतन निर्धारण में हस्तक्षेप नहीं करेगा।
सरकार को कोर्ट का सुझाव
हालांकि याचिका खारिज कर दी गई, लेकिन हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को अहम सुझाव देते हुए कहा कि बदलते दौर में ग्राम चौकीदारों की भूमिका का पुनर्मूल्यांकन किया जाना चाहिए। सरकारी वकील ने दलील दी कि ग्राम चौकीदारों से महीने में केवल दो दिन सेवा ली जाती है और शेष समय में उन्हें अन्य कार्य करने की स्वतंत्रता है।
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