निजी स्कूलों की भूमिका पर सवाल
निजी स्कूलों की भूमिका पर लगातार सवाल उठ रहे हैं। कई स्कूल ऐसे हैं जिन्होंने आरटीई के तहत चयनित बच्चों को दाखिला देने से मना कर दिया या दाखिले की प्रक्रिया को जानबूझकर टाल दिया। यही वजह है कि अब बेसिक शिक्षा निदेशालय ने ऐसे स्कूलों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने का निर्णय लिया है।
नोटिस और मान्यता समाप्ति की चेतावनी
हाल ही में हुई समीक्षा बैठक में निदेशालय ने स्पष्ट निर्देश दिए हैं कि ऐसे सभी निजी विद्यालयों को नोटिस जारी किए जाएं, जिनमें आरटीई के तहत चयनित बच्चों का दाखिला नहीं हुआ है। इनसे पूछा जाएगा कि उन्होंने अब तक बच्चों को दाखिला क्यों नहीं दिया। यदि जवाब संतोषजनक नहीं हुआ, तो स्कूलों की मान्यता रद्द करने की प्रक्रिया शुरू की जा सकती है। कुछ जिलों में तो पहले ही स्कूलों की मान्यता रद्द करने की संस्तुति की जा चुकी है।
शिक्षा का अधिकार: केवल कानून नहीं, सामाजिक ज़िम्मेदारी
आरटीई कानून के तहत 6 से 14 वर्ष के सभी बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार प्राप्त है। इसमें प्रावधान है कि निजी स्कूलों को अपनी कुल सीटों का 25% निर्धन, वंचित और वंचित समूहों के बच्चों के लिए आरक्षित रखना होगा। इन बच्चों की फीस सरकार देती है, ताकि आर्थिक तंगी शिक्षा की राह में रोड़ा न बने। जब निजी स्कूल इस नियम का पालन नहीं करते, तो यह केवल कानून का उल्लंघन नहीं होता, बल्कि यह समाज के सबसे कमजोर तबके के बच्चों के भविष्य के साथ अन्याय भी है।
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