भारत अब उस विशिष्ट समूह में शामिल होने की ओर अग्रसर है, जिसमें अब तक केवल पांच देश — अमेरिका, रूस, फ्रांस, ब्रिटेन और चीन — शामिल थे। यह समूह उन देशों का है, जिन्होंने जेट इंजन निर्माण की जटिल और उच्च तकनीक को आत्मसात किया है। एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार, भारत अब छठा ऐसा देश बनने जा रहा है जो अपने खुद के फाइटर जेट इंजन को डिजाइन और विकसित कर रहा है।
रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) द्वारा विकसित ‘कावेरी’ इंजन को हाल ही में इनफ्लाइट परीक्षण (In-flight testing) की मंजूरी दी गई है। यह एक बड़ा मील का पत्थर माना जा रहा है, क्योंकि इनफ्लाइट टेस्टिंग से पहले इंजन को जमीन पर कई कठोर परीक्षणों से गुजरना होता है। कावेरी इंजन भारतीय वायुसेना के भविष्य के फाइटर जेट्स में इतेमाल किया जा सकता हैं।
तकनीकी आत्मनिर्भरता की ओर कदम
भारत सरकार और रक्षा मंत्रालय इस परियोजना को अत्यधिक प्राथमिकता दे रहे हैं। ‘मेक इन इंडिया’ और ‘आत्मनिर्भर भारत’ अभियानों के तहत, स्वदेशी रक्षा तकनीक में भारत लगातार निवेश बढ़ा रहा है। विशेषज्ञों के अनुसार, जेट इंजन निर्माण रक्षा तकनीक की सबसे कठिन और जटिल शाखाओं में से एक है, और भारत द्वारा इसमें प्रगति करना एक महत्वपूर्ण रणनीतिक उपलब्धि मानी जा रही है।
अंतरराष्ट्रीय सहयोग और स्वदेशी विकास
सूत्रों के अनुसार, भारत ने इस तकनीक के विकास में कुछ अंतरराष्ट्रीय सहयोग का भी सहारा लिया है, लेकिन मूल ध्यान स्वदेशी क्षमताओं के निर्माण पर ही केंद्रित रहा है। रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि यह पहल भारत को विदेशी निर्भरता से मुक्त कर देश की सामरिक शक्ति को और मजबूत करेगी।
जेट इंजन को लेकर क्या हैं आगे की राह?
‘कावेरी इंजन’ परियोजना की सफलता भारत को न केवल सैन्य क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाएगी, बल्कि यह देश की रक्षा निर्यात क्षमताओं को भी बढ़ावा दे सकती है। साथ ही, इससे भारत वैश्विक रक्षा बाजार में एक विश्वसनीय खिलाड़ी के रूप में उभर सकता है। विशेषज्ञों की मानें तो अगला बड़ा कदम होगा इस इंजन को सफलतापूर्वक किसी लड़ाकू विमान में एकीकृत करना और उसे भारतीय वायुसेना के मानकों पर खरा उतरते हुए सेवा में शामिल करना।
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