अटलांटिक काउंसिल की रिपोर्ट के अनुसार, वर्तमान में केवल अमेरिका, रूस और चीन के पास ही हाइपरसोनिक हथियार प्रणाली थी। अब भारत भी इस टेक्नोलॉजी में प्रवेश कर चुका है, जो देश की रणनीतिक और सैन्य क्षमताओं को नई ऊंचाइयों पर ले जाने वाला कदम माना जा रहा है।
क्या है हाइपरसोनिक मिसाइल और क्यों है यह खास?
हाइपरसोनिक मिसाइलें ऐसी अत्याधुनिक मिसाइलें होती हैं जो ध्वनि की गति से पांच गुना (Mach 5) या उससे अधिक रफ्तार से उड़ सकती हैं। भारत की हालिया परीक्षण की गई मिसाइल की रफ्तार लगभग 6,200 किलोमीटर प्रति घंटा रही, जो इसे दुश्मन की रडार प्रणाली से बचने में भी सक्षम बनाती है।
इस मिसाइल की रेंज 1500 किलोमीटर है और यह हथियारों को तेजी से ले जाने में सक्षम है। सबसे खास बात यह है कि इसकी सटीकता अत्यधिक उच्च स्तर की है – यह अपने लक्ष्य को कभी चूकती नहीं है, जो इसे परंपरागत मिसाइलों से कहीं अधिक प्रभावशाली बनाता है।
भारत की तकनीकी प्रगति और डीआरडीओ की भूमिका
इस तकनीक के पीछे भारत का रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) है, जो वर्षों से हाइपरसोनिक तकनीक पर अनुसंधान कर रहा था। डीआरडीओ ने इंडिजिनस (स्वदेशी) टेक्नोलॉजी के बलबूते यह उपलब्धि हासिल की है, जो "आत्मनिर्भर भारत" के रक्षा क्षेत्र को मजबूत करने की दिशा में एक बड़ा कदम है।
वैश्विक परिदृश्य और भारत की स्थिति
जहां अमेरिका, चीन और रूस हाइपरसोनिक मिसाइलों के जरिए वैश्विक सैन्य शक्ति संतुलन को प्रभावित कर रहे हैं, वहीं अब भारत की इस सफलता ने एशिया में सामरिक संतुलन को नया आयाम दिया है। इस उपलब्धि के बाद भारत रणनीतिक रूप से अधिक सुरक्षित और तकनीकी रूप से अधिक सक्षम राष्ट्र के रूप में उभरेगा।
सुरक्षा विशेषज्ञों की राय
रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि हाइपरसोनिक हथियार भविष्य की लड़ाइयों का चेहरा बदल सकते हैं। “भारत की यह सफलता न केवल टेक्नोलॉजिकल श्रेष्ठता को दर्शाती है, बल्कि यह प्रतिरोधक क्षमता को भी कई गुना बढ़ा देती है।” भारत ब्रह्मोस-2 हाइपरसोनिक मिसाइल पर भी काम कर रहा हैं।
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