पुराने आधार पर नई तैयारी
मौजूदा संकेतों से स्पष्ट है कि आरक्षण प्रक्रिया को तय करने के लिए 2021 के पंचायत चुनाव को आधार माना जा सकता है। यदि ऐसा होता है तो 2021 में जिस वर्ग के लिए सीटें आरक्षित थीं, उनमें परिवर्तन तय माना जा रहा है। इससे स्थानीय स्तर पर राजनैतिक समीकरणों में भी बदलाव संभावित है। इससे संभावित उम्मीदवारों में असमंजस और रणनीतिक तैयारी दोनों शुरू हो गई हैं।
आयोग का गठन या पुरानी व्यवस्था?
ओबीसी आरक्षण को लेकर सबसे बड़ी निगाहें पिछड़ा वर्ग आयोग के गठन पर टिकी हैं। यदि राज्य सरकार आयोग का गठन करती है तो उसे आरक्षण तय करने के लिए कम से कम तीन महीने का समय देना होगा। लेकिन एक चर्चित संभावना यह भी सामने आ रही है कि सरकार आयोग के गठन से पीछे हट सकती है। केंद्र सरकार द्वारा प्रस्तावित जातीय जनगणना को इसका कारण माना जा रहा है, जिसके परिणाम आने तक राज्य कोई बड़ा कदम नहीं उठाना चाहता। यदि आयोग का गठन नहीं होता, तो पिछली बार की तरह शासन स्तर से ही आरक्षण प्रक्रिया को अंतिम रूप दिया जाएगा।
क्या हैं आरक्षण का खाका
उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनावों में आरक्षण की सामान्य संरचना कुछ इस प्रकार है: अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC): 27%, अनुसूचित जाति (SC): 20.69%, अनुसूचित जनजाति (ST): 0.56%, इन आरक्षित सीटों में प्रत्येक वर्ग के लिए 33% सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित की जाएंगी, जिससे महिला नेतृत्व को भी मजबूती मिलेगी।
परिसीमन: नई संरचना की ओर
आरक्षण से पहले परिसीमन की प्रक्रिया अनिवार्य है। ग्राम पंचायत, क्षेत्र पंचायत और जिला पंचायत स्तर पर वार्डों का पुनर्गठन जुलाई माह में पूरा किए जाने की योजना है। इसके लिए शासनादेश शीघ्र ही जारी होने की संभावना है। नए परिसीमन में पंचायत वार्डों की संख्या में थोड़ी कमी आएगी। इसका प्रमुख कारण शहरीकरण है, जिससे 512 ग्राम पंचायतों का विलोपन हुआ है। शहरी क्षेत्रों के बढ़ते विस्तार के चलते यह परिवर्तन आवश्यक हो गया है।
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