क्यों जरूरी था यह बदलाव?
ब्लैक बोर्ड का उपयोग वर्षों से हो रहा है, लेकिन इससे उठने वाली धूल और इसकी दृश्यता संबंधी समस्याओं को लेकर समय-समय पर सवाल उठते रहे हैं। व्हाइट और ग्रीन बोर्ड धूल रहित होते हैं, जिससे न केवल छात्रों और शिक्षकों के स्वास्थ्य पर सकारात्मक असर पड़ता है, बल्कि साफ-सुथरे और आकर्षक क्लासरूम का माहौल भी बनता है। यही कारण है कि अब परिषदीय स्कूलों को इस आधुनिक विकल्प की ओर मोड़ा जा रहा है।
स्मार्ट क्लास की ओर बढ़ता कदम
प्रदेश सरकार ने सत्र 2025-26 के लिए परिषदीय स्कूलों को कुल 246 करोड़ रुपये की कंपोजिट ग्रांट जारी की है, जो कुल अनुमोदित राशि का 50 प्रतिशत है। इस राशि का एक हिस्सा स्कूलों में स्मार्ट क्लास रूम, डिजिटल शिक्षा और स्वच्छता सुविधाओं पर खर्च किया जाएगा। विद्यालयों में पहले से वितरित टैबलेट में सिम और इंटरनेट की सुविधा उपलब्ध कराने की भी योजना है, जिससे शिक्षण को तकनीक से जोड़ा जा सके।
विद्यालयों की दीवारों पर आएगी पारदर्शिता
ग्रांट के व्यय की पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए यह निर्देश दिया गया है कि प्रत्येक विद्यालय की दीवारों पर पेंट के माध्यम से यह जानकारी लिखी जाए कि ग्रांट की राशि कहां और कैसे खर्च की गई। इससे अभिभावकों, समुदाय और निगरानी समितियों को स्कूल के अंदर होने वाले कार्यों की सही जानकारी मिल सकेगी।
मरम्मत और रख-रखाव भी होगा आसान
कई परिषदीय विद्यालयों में एलईडी लाइट, पंखे, ट्यूबलाइट आदि वर्षों से खराब पड़े हैं। अब कंपोजिट ग्रांट का उपयोग इनकी मरम्मत में भी किया जा सकेगा, जिससे बच्चों को पढ़ाई के समय रोशनी और हवा की दिक्कत नहीं होगी।
स्कूलों की साफ-सफाई और सुरक्षा को प्राथमिकता
महानिदेशक स्कूल शिक्षा कंचन वर्मा द्वारा जारी निर्देशों में विशेष रूप से इस बात पर बल दिया गया है कि कंपोजिट ग्रांट की 10 फीसदी राशि विद्यालयों की साफ-सफाई और हाइजीन पर खर्च की जाए। इस राशि से सफाई सामग्री, झाड़ू, पोछा, डस्टबिन आदि की खरीद की जाएगी। इसके अलावा सभी स्कूलों में फर्स्ट एड किट, आवश्यक दवाएं और अग्निशमन यंत्र की व्यवस्था करना भी अनिवार्य किया गया है।
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