1. अमेरिका – सबसे आगे स्पेस वॉर की दौड़ में
2019 में अमेरिका ने आधिकारिक रूप से United States Space Force (USSF) की स्थापना की। यह अमेरिकी सैन्य तंत्र की छठी शाखा है, जिसका उद्देश्य पृथ्वी की कक्षा में अमेरिकी सैटेलाइट्स की रक्षा और अंतरिक्ष आधारित हमलों से मुकाबला करना है। अमेरिका के पास पहले से ही अत्याधुनिक स्पेस टेक्नोलॉजी और हथियारों की ताकत है।
2. रूस – चुपचाप लेकिन ताकतवर
रूस की Aerospace Forces में स्पेस डिवीजन पहले से शामिल है। सोवियत काल से ही रूस अंतरिक्ष के सैन्य उपयोग पर काम करता आ रहा है। रूस के पास एंटी-सैटेलाइट वेपन्स (ASAT), इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर सिस्टम्स और कक्षा में तैनात निगरानी उपकरण मौजूद हैं।
3. चीन – चंद्रमा से आगे की सोच
चीन ने 2015 में अपनी People’s Liberation Army Strategic Support Force बनाई थी, जिसमें स्पेस, साइबर और इलेक्ट्रॉनिक युद्ध शामिल हैं। चीन ने 2007 में एक पुराने उपग्रह को मिसाइल से गिराकर अपनी ASAT क्षमता दिखा दी थी। चीन का लक्ष्य है स्पेस में आत्मनिर्भर और सामरिक रूप से शक्तिशाली बनना।
4. फ्रांस – यूरोप की स्पेस वॉर तैयारियों की अगुआई में
2019 में फ्रांस ने French Space Command (Commandement de l'espace) की घोषणा की। इसका मकसद है फ्रांसीसी सैटेलाइट्स की सुरक्षा और रक्षा नीति को अंतरिक्ष तक विस्तार देना। फ्रांस ने लेज़र-आधारित रक्षा प्रणाली और माइक्रो-सैटेलाइट डिटेक्शन सिस्टम पर काम शुरू कर दिया है।
5. भारत – रणनीतिक तैयारी जारी
भारत के पास फिलहाल अलग स्पेस फोर्स नहीं है, लेकिन Defence Space Agency (DSA) और DRDO इस दिशा में लगातार काम कर रहे हैं। 2019 में भारत ने मिशन शक्ति के तहत एक लाइव सैटेलाइट को मार गिराकर एंटी-सैटेलाइट तकनीक में अपनी मौजूदगी दर्ज कराई। ISRO और DRDO के तालमेल से भारत आने वाले वर्षों में स्पेस वॉरफेयर में और सक्षम हो सकता है।
6. जापान – सैटेलाइट रक्षा में आगे
जापान ने 2020 में Space Operations Squadron की स्थापना की। यह जापान की आत्मरक्षा बल (JSDF) का हिस्सा है। इस यूनिट का मकसद है सैटेलाइट संचार की सुरक्षा और संभावित अंतरिक्ष खतरों पर नजर रखना।
स्पेस वॉर: एक नई चिंता का विषय
स्पेस फोर्स की अवधारणा भले ही तकनीकी विकास का प्रतीक हो, लेकिन यह वैश्विक सुरक्षा के लिए एक नई चुनौती भी पेश करती है। यदि अंतरिक्ष में हथियारों की होड़ बढ़ती है, तो आने वाले दशकों में कक्षा में टकराव, सैटेलाइट जामिंग और स्पेस डेब्रिस जैसे मुद्दे गंभीर रूप ले सकते हैं।
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