सावन में शिव के 4 मंत्रों से करें साधना, हर दुख-दर्द होगा दूर

धर्म डेस्क। सावन का महीना शिवभक्तों के लिए अत्यंत पावन और फलदायक माना जाता है। यह वह समय है जब भगवान शिव की उपासना से मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं और जीवन के समस्त कष्टों से मुक्ति मिलती है। शास्त्रों के अनुसार, सावन में चार प्रहरों की पूजा का विशेष महत्व है और प्रत्येक प्रहर में अलग-अलग मंत्रों का जाप करना अत्यंत शुभ और चमत्कारी फल प्रदान करता है।

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, शिव के पांच स्वरूप होते हैं — ईशान, अघोर, वामदेव, तत्पुरुष और सद्योजात। चार प्रहर की पूजा में चार रूपों की आराधना विशेष रूप से की जाती है। जानिए कौन से हैं वे चार मंत्र जो सावन में आपकी साधना को पूर्णता की ओर ले जा सकते हैं:

1 .प्रथम प्रहर का मंत्र:

"ह्रीं ईशानाय नमः"

यह मंत्र भगवान शिव के ईशान रूप की आराधना के लिए है। यह स्वरूप ज्ञान, शांति और आत्मिक शक्ति का प्रतीक है। सुबह के प्रथम प्रहर (ब्राह्म मुहूर्त) में इस मंत्र का जाप करने से मानसिक शुद्धि होती है और जीवन में नई ऊर्जा का संचार होता है।

2 .द्वितीय प्रहर का मंत्र:

"ह्रीं अघोराय नमः"

दूसरे प्रहर में शिव के अघोर रूप की पूजा की जाती है। यह मंत्र भय, रोग और नकारात्मक ऊर्जा को नष्ट करता है। इस मंत्र का जाप करते समय व्यक्ति आत्मिक बल महसूस करता है और मन में साहस व स्थिरता आती है।

3 .तृतीय प्रहर का मंत्र:

"ह्रीं वामदेवाय नमः"

तीसरे प्रहर में शिव के वामदेव रूप का स्मरण किया जाता है, जो सौंदर्य, करुणा और रक्षा का प्रतीक है। यह मंत्र दांपत्य जीवन और पारिवारिक सुख के लिए अत्यंत प्रभावशाली माना जाता है।

 4 .चतुर्थ प्रहर का मंत्र:

"ह्रीं सद्योजाताय नमः"

चौथे और अंतिम प्रहर में सद्योजात स्वरूप की आराधना की जाती है। यह रूप रचनात्मकता, सृजन और नए आरंभ का प्रतीक है। इस मंत्र का जाप जीवन में नए अवसरों के द्वार खोलता है और अधूरे कार्य पूर्ण होते हैं।

कैसे करें जाप?

चार प्रहर की पूजा में प्रत्येक मंत्र का जाप कम से कम 108 बार करना शुभ माना जाता है। यदि समय की कमी हो, तो सच्चे मन से 11 बार भी मंत्रोच्चार करने से लाभ होता है। जाप के दौरान शांत वातावरण में बैठें, दीप प्रज्वलित करें और शिवलिंग पर जल या दूध अर्पित करें

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