तकनीक और आत्मनिर्भरता का संगम
यह उपलब्धि सिर्फ गति नहीं, बल्कि गुणवत्ता की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण मानी जा रही है। भारत ने डिज़ाइन, सिमुलेशन, टेस्टिंग और उत्पादन की सभी प्रक्रियाओं को डिजिटल और मॉड्यूलर बनाया है। इससे न केवल विकास की रफ्तार तेज हुई है, बल्कि लागत और संसाधनों की बचत भी सुनिश्चित हुई है। डॉ. रेड्डी के अनुसार, यह सफलता आत्मनिर्भर भारत की सोच का प्रत्यक्ष परिणाम है। उन्होंने बताया कि तकनीकी आत्मनिर्भरता अब भारत की सामरिक नीति का मूल आधार बन चुकी है।
आधुनिक मिसाइलें, नया आत्मविश्वास
भारत का मिसाइल कार्यक्रम पहले ही वैश्विक स्तर पर अपनी पहचान बना चुका है। अग्नि श्रृंखला की बैलिस्टिक मिसाइलें, ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज़ मिसाइल, और आकाश एयर डिफेंस सिस्टम जैसी प्रणालियाँ पहले से ही सेना की रीढ़ बन चुकी हैं।
हाल के वर्षों में दो नई मिसाइल परियोजनाएँ — मैन-पोर्टेबल एंटी-टैंक गाइडेड मिसाइल (MPATGM) और हाइपरसोनिक टेक्नोलॉजी डेमोंस्ट्रेटर व्हीकल (HSTDV) — भारत की क्षमताओं को और आगे ले जा रही हैं। इनका विकास रिकॉर्ड समय में हुआ है।
निजी क्षेत्र की बढ़ती भागीदारी
इस सफलता के पीछे सरकार और निजी उद्योगों के बीच बेहतर तालमेल भी एक अहम कारक है। भारत डायनामिक्स लिमिटेड, लार्सन एंड टुब्रो, और टाटा एडवांस्ड सिस्टम्स जैसी कंपनियों ने डिजाइन, उत्पादन और आपूर्ति श्रृंखला को चुस्त-दुरुस्त करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। इससे रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता को नई गति मिली है।
भारत अब वैश्विक मंच पर
भारत की यह प्रगति न केवल सैन्य शक्ति के दृष्टिकोण से, बल्कि रणनीतिक और आर्थिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। अमेरिका, रूस और चीन जैसे देशों की पंक्ति में खड़ा भारत अब रक्षा उत्पादों के निर्यातक के रूप में भी उभर रहा है।
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