यूपी पर बढ़ता आर्थिक बोझ: प्रति व्यक्ति 37,500 का कर्ज

लखनऊ। उत्तर प्रदेश देश का सबसे अधिक जनसंख्या वाला राज्य होने के साथ-साथ विकास की दौड़ में भी अब पीछे नहीं है। बीते वर्षों में राज्य ने आधारभूत संरचना, निवेश, और औद्योगीकरण के क्षेत्र में अभूतपूर्व प्रगति की है। लेकिन इस विकास की ऊँचाई के साथ एक आर्थिक बोझ भी समानांतर रूप से बढ़ता गया है।

एक रिपोर्ट के मुताबिक यूपी में प्रति व्यक्ति कर्ज ₹37,500 तक पहुंच गया है, जो एक आम नागरिक के लिए चौंकाने वाली स्थिति है। वित्तीय आंकड़े बताते हैं कि वर्ष 2020-21 में जहां राज्य पर कुल कर्ज 5.6 लाख करोड़ रुपये था, वहीं 2025-26 तक इसके 9 लाख करोड़ रुपये से अधिक होने का अनुमान है।

विकास और कर्ज का रिश्ता

राज्य वित्त आयोग का मानना है कि उधारी और कर्ज को हमेशा नकारात्मक दृष्टिकोण से नहीं देखा जाना चाहिए। वास्तव में, यदि राज्य उधार की गई राशि का उपयोग सड़क, जल, शिक्षा, स्वास्थ्य और औद्योगिक ढांचे के विकास में करता है, तो यह दीर्घकालिक आर्थिक लाभ का मार्ग प्रशस्त करता है।

यह भी एक सच्चाई है कि जैसे-जैसे राज्य की आर्थिक गतिविधियाँ बढ़ती हैं, वैसे-वैसे सरकार के खर्च भी बढ़ते हैं। इसी कारण राज्य का बजट आकार पिछले पांच वर्षों में लगभग दोगुना हो गया है। इसका सीधा तात्पर्य यह है कि सरकार ने खर्च बढ़ाया है, लेकिन वह खर्च योजनाबद्ध और अपेक्षाकृत अनुशासित रहा है।

राजकोषीय घाटा: चिंता या नियंत्रण में?

वित्तीय स्थिति का एक महत्वपूर्ण सूचकांक राजकोषीय घाटा होता है, जो यह दर्शाता है कि सरकार अपनी आय के मुकाबले कितनी अधिक राशि खर्च कर रही है। यूपी का अनुमानित राजकोषीय घाटा वित्त वर्ष 2025-26 में ₹91,400 करोड़ है, जो राज्य की जीएसडीपी का लगभग 2.97% है। यह घाटा RBI द्वारा निर्धारित 3% की सीमा के अंदर है, जो यह बताता है कि राज्य सरकार वित्तीय अनुशासन बनाए रखने में सक्षम रही है।

चुनौती और संतुलन की भी जरूरत

हालांकि फिलहाल सरकार का राजकोषीय प्रबंधन संतुलित नजर आता है, लेकिन लगातार बढ़ते कर्ज का असर दीर्घकाल में आर्थिक स्थिरता पर पड़ सकता है। कर्ज के साथ बढ़ती ब्याज देनदारी भविष्य में विकास बजट को सीमित कर सकती है। खासकर ऐसे राज्य में, जहां बड़ी आबादी अभी भी गरीबी रेखा के आसपास है, सामाजिक क्षेत्र में निवेश की निरंतरता जरूरी है।

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