हाइपरसोनिक रेस में सिर्फ 4 देश ही अव्वल, बाकी पीछे छूटे!

नई दिल्ली। बीते कुछ वर्षों में वैश्विक रक्षा तकनीकों में सबसे चर्चित और क्रांतिकारी विकास हाइपरसोनिक मिसाइल तकनीक को लेकर हुआ है। ये मिसाइलें सामान्य बैलिस्टिक या क्रूज़ मिसाइलों की तुलना में कई गुना तेज होती हैं, और दुश्मन की एयर डिफेंस को भेदने में लगभग अजेय मानी जाती हैं।

आज की तारीख में यह क्षेत्र एक उच्च स्तरीय रणनीतिक श्रेष्ठता का प्रतीक बन चुका है, लेकिन चौंकाने वाली बात यह है कि पूरी दुनिया में सिर्फ चार देश ही इस तकनीक में वास्तविक सफलता प्राप्त कर पाए हैं। ये देश हैं अमेरिका, रूस, चीन और भारत।

क्या होती है हाइपरसोनिक मिसाइल?

हाइपरसोनिक मिसाइलें वे प्रक्षेपास्त्र होती हैं जो ध्वनि की गति से कम से कम पांच गुना (Mach 5+) अधिक तेज होती हैं। यह रफ्तार इन्हें दुश्मन के रडार और इंटरसेप्टर से बचाकर अत्यधिक सटीकता के साथ निशाना साधने में सक्षम बनाती है। इन मिसाइलों को दो प्रमुख श्रेणियों में बांटा जाता है: पहला हाइपरसोनिक ग्लाइड व्हीकल (HGV) जो पहले रॉकेट से लॉन्च होते हैं और फिर ऊपरी वायुमंडल में ग्लाइड करते हैं। वहीं, दूसरा हाइपरसोनिक क्रूज़ मिसाइल (HCM) जो स्क्रैमजेट इंजन की मदद से स्थायी हाइपरसोनिक गति पर उड़ान भरते हैं।

कौन हैं ये चार देश?

1. रूस: रूस ने इस क्षेत्र में सबसे पहले सक्रियता दिखाई और अपनी हाइपरसोनिक प्रणाली "Avangard" और "Kinzhal" जैसी मिसाइलों का सफल परीक्षण कर दुनिया को चौंका दिया।

2. चीन: चीन ने DF-ZF नामक हाइपरसोनिक ग्लाइड व्हीकल विकसित किया है। अमेरिका के अनुसार, चीन इस तकनीक के सैन्य उपयोग को लेकर बहुत आक्रामक रणनीति अपना रहा है।

3. अमेरिका: हालाँकि अमेरिका ने इस दौड़ की शुरुआत में अपेक्षाकृत धीमी गति दिखाई, लेकिन अब उसने ARRW (Air-Launched Rapid Response Weapon) और Hypersonic Attack Cruise Missile जैसे प्रोजेक्टों पर तेज़ी से काम करना शुरू कर दिया है।

4. भारत: भारत ने HSTDV (Hypersonic Technology Demonstrator Vehicle) का सफल परीक्षण कर इस सूची में अपना नाम दर्ज करवाया है। इसके साथ ही ब्रह्मोस-II जैसी योजनाएं भविष्य की ओर इशारा कर रही हैं। DRDO के वैज्ञानिकों ने इस दिशा में आत्मनिर्भरता की ओर एक ठोस कदम उठाया है।

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