भारत की ज़रूरत, लेकिन फैसला अभी अधूरा
इन हथियारों की ज़रूरत भारत को भी है। सीमा सुरक्षा, हवाई प्रभुत्व और मिसाइल रक्षा के लिहाज़ से भारत के लिए ये चारों सिस्टम निर्णायक साबित हो सकते हैं। खासकर, Su-57 और S-500 जैसे प्लेटफॉर्म भारत की रक्षा क्षमताओं में गुणात्मक छलांग लाने की क्षमता रखते हैं।
लेकिन इन सबके बावजूद, भारत ने अभी तक रूस के इस प्रस्ताव पर कोई आधिकारिक सहमति नहीं दी है। इसका एक बड़ा कारण है अमेरिका का बढ़ता दबाव। अमेरिका, जो हाल ही में भारत का रणनीतिक रक्षा साझेदार बना है, नहीं चाहता कि भारत रूस के साथ बड़ी रक्षा डील करे खासकर तब, जब रूस यूक्रेन युद्ध में उलझा हुआ है और वाशिंगटन की नजर में आलोचनाओं के घेरे में है।
रणनीतिक विविधता भी एक वजह
भारत की ‘स्ट्रैटेजिक ऑटोनॉमी’ नीति के तहत, सरकार अब रक्षा खरीद में किसी एक देश पर निर्भरता कम करना चाहती है। यही कारण है कि भारत अमेरिका, फ्रांस, इजरायल और घरेलू रक्षा उद्योग से भी बराबर हथियार खरीद कर रहा है। रूस के साथ ऐतिहासिक संबंध होने के बावजूद, अब भारत हथियार स्रोतों में विविधता बनाए रखना चाहता है ताकि भविष्य में किसी एक देश के भू-राजनीतिक फैसलों का असर भारत की रक्षा तैयारियों पर न पड़े।
भारत के लिए "क्रांतिकारी" हो सकते हैं ये हथियार
रूसी मीडिया स्पुतनिक से बात करते हुए रूस के प्रमुख रक्षा विश्लेषक इगोर कोरोटचेंको ने कहा कि Su-57, R-37 और S-500 जैसे सिस्टम भारतीय सशस्त्र बलों के लिए क्रांतिकारी साबित हो सकते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि भारत पहले ही S-400 की सफलता देख चुका है और अब वह S-500 की क्षमताओं में गहरी रुचि ले सकता है।
S-500 को रूस ने खास तौर पर हाइपरसोनिक मिसाइल और अत्याधुनिक हवाई खतरों को नष्ट करने के लिए डिजाइन किया है। वहीं Su-57 रूस का पहला स्टील्थ फाइटर है, जिसमें सुपरक्रूज़, हाई मैन्युवरेबिलिटी और लो ऑब्ज़र्वेबिलिटी जैसी खूबियां शामिल हैं। इसके अलावा, R-37 मिसाइल 400 किमी से अधिक की रेंज के साथ दुनिया की सबसे लंबी दूरी तक हवा में मार करने वाली मिसाइलों में से एक मानी जाती है।
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