इस प्रणाली का नाम भगवान श्रीकृष्ण के पौराणिक शस्त्र 'सुदर्शन चक्र' से लिया गया है, पर इसका दृष्टिकोण पूरी तरह भविष्य की ओर केंद्रित है। ‘सुदर्शन चक्र’ न केवल रक्षात्मक भूमिका निभाएगा, बल्कि जरूरत पड़ने पर शत्रु के ठिकानों पर सटीक हमला भी कर सकेगा। एक ऐसी क्षमता जो इसे केवल "एंटी-मिसाइल शील्ड" नहीं, बल्कि एक बहुस्तरीय, एआई-संचालित रक्षा और आक्रमण प्लेटफॉर्म बनाती है।
आयरन डोम या गोल्डन डोम से अलग क्यों है 'सुदर्शन चक्र'?
इजरायल की आयरन डोम प्रणाली विश्व भर में अपनी प्रभावशीलता के लिए जानी जाती है खासकर कम दूरी के रॉकेट और मोर्टार हमलों को रोकने में इसकी 90% से अधिक की सफलता दर उल्लेखनीय है। अमेरिका द्वारा प्रस्तावित 'गोल्डन डोम' इस तकनीक को और अधिक विस्तार देने का प्रयास है, जो पृथ्वी से लेकर अंतरिक्ष तक के खतरों को रोकने की दिशा में काम कर रहा है।
लेकिन भारत का सुदर्शन चक्र इन दोनों से कहीं अधिक व्यापक सोच पर आधारित है। यह एक ऐसी प्रणाली होगी जो दुश्मन की मिसाइलों और ड्रोन को केवल रोकने तक सीमित नहीं रहेगी, बल्कि उनका स्रोत यानी कि कमांड सेंटर, एयरबेस या आतंकी ठिकानों को भी नष्ट कर सकेगी। यह रक्षात्मक और आक्रामक क्षमताओं का दुर्लभ मेल होगा, जो आज की किसी भी परिचालित प्रणाली में नहीं दिखता।
आम नागरिक से लेकर धार्मिक स्थलों तक सुरक्षा कवच
प्रधानमंत्री मोदी ने यह स्पष्ट किया कि सुदर्शन चक्र केवल सैन्य जरूरतों तक सीमित नहीं रहेगा। यह प्रणाली महत्वपूर्ण नागरिक और सांस्कृतिक स्थलों जैसे कि धार्मिक तीर्थ, जनसंख्या-घनत्व वाले शहर या सामरिक महत्व के आर्थिक केंद्र की रक्षा में भी सक्षम होगी। इसका संकेत है कि सुदर्शन चक्र ‘एक देश, एक सुरक्षा प्रणाली’ के सिद्धांत पर कार्य करेगा।
प्रोजेक्ट कुशा को पीछे छोड़ने की तैयारी
भारत पहले से ही 'प्रोजेक्ट कुशा' नामक एक दीर्घ दूरी की वायु रक्षा प्रणाली पर काम कर रहा है, जिसे रूसी S-500 के समकक्ष माना जा रहा है। लेकिन सुदर्शन चक्र की बहुआयामी और अधिक जटिल संरचना इसे प्रोजेक्ट कुशा से भी एक कदम आगे ले जाती है। सूत्रों के अनुसार, यह प्रणाली वायु, थल और समुद्री लक्ष्यों को ट्रैक करने और जवाब देने में सक्षम होगी, और इसके भीतर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आधारित निर्णय प्रणाली शामिल होगी।
आत्मनिर्भर भारत का रक्षा संकल्प
सुदर्शन चक्र की प्रस्तावित तैनाती की समय-सीमा 2035 तय की गई है, जो इसे भारत की दीर्घकालिक रणनीतिक योजना का हिस्सा बनाती है। यह केवल तकनीकी उपलब्धि नहीं, बल्कि ‘मेक इन इंडिया’ और ‘आत्मनिर्भर भारत’ की रक्षा नीति का प्रतीक बन सकती है। इसकी परिकल्पना न केवल भविष्य की लड़ाइयों के स्वरूप को परिभाषित करेगी, बल्कि भारत को तकनीकी और सामरिक आत्मनिर्भरता के उस मुकाम पर ले जाएगी, जहां वह न केवल अपनी रक्षा कर सके, बल्कि जरूरत पड़ने पर निर्णायक प्रतिघात देने में भी सक्षम हो।
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