क्यों है मामला गंभीर?
वित्त वर्ष 2024-25 में भारत का समुद्री खाद्य निर्यात 7.45 अरब डॉलर पर स्थिर रहा, लेकिन निर्यात की मात्रा में गिरावट दर्ज की गई। फ्रोजन श्रिम्प, जो भारत का सबसे प्रमुख समुद्री निर्यात उत्पाद है, 5.17 अरब डॉलर की कमाई के साथ शीर्ष पर रहा। यह निर्यात मूल्य का करीब 69% और मात्रा का लगभग 44% हिस्सा है।
हालांकि, अमेरिका भारत का सबसे बड़ा खरीदार बना हुआ है, लेकिन टैरिफ बढ़ने से वहां प्रतिस्पर्धा कठिन हो सकती है। इससे भारत को दोहरा नुकसान हो सकता है। एक तरफ निर्यात में कमी, दूसरी तरफ वैश्विक बाजार हिस्सेदारी का ह्रास। ऐसे में भारत को जल्द नए बाजार खोजने होंगे।
नए बाजारों की खोज: विकल्प ही समाधान
एमपीईडीए (MPEDA) के चेयरमैन डी. वी. स्वामी ने इस स्थिति को अवसर के रूप में देखने की बात कही है। उनका मानना है कि भारत का समुद्री उत्पाद क्षेत्र लचीला और स्थिर है, जो समय-समय पर चुनौतियों का डटकर सामना करता आया है।
सरकार और एमपीईडीए अब अमेरिका पर अत्यधिक निर्भरता से हटकर नए बाजारों की ओर देखने की रणनीति बना रहे हैं। रूस, यूरोपीय संघ, ब्रिटेन, दक्षिण कोरिया, नॉर्वे, स्विट्जरलैंड और पश्चिम एशिया को संभावित नए आयातक देशों के रूप में चिन्हित किया गया है। इन क्षेत्रों में समुद्री खाद्य की मांग भी लगातार बढ़ रही है।
एक रणनीतिक बदलाव की ज़रूरत
भारत के लिए यह केवल व्यापार का मामला नहीं, बल्कि रणनीतिक सोच का विषय बन चुका है। समुद्री खाद्य निर्यात को बनाए रखने के लिए न केवल नए बाज़ारों की तलाश जरूरी है, बल्कि उत्पादों की विविधता और गुणवत्ता में भी निरंतर सुधार लाना होगा। एमपीईडीए इस दिशा में प्रयास कर रही है कि उत्पादों की प्रोसेसिंग, स्टोरेज, शिपिंग और प्रमोशन के स्तर पर अंतरराष्ट्रीय मानकों को अपनाया जाए।
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