1. सभी उत्तराधिकारियों की सहमति अनिवार्य
यदि ज़मीन पुश्तैनी है और अब तक बंटी नहीं है, तो उसे ‘अविभाजित संपत्ति’ माना जाएगा। इस स्थिति में हर कानूनी वारिस चाहे बेटा हो, बेटी, माता-पिता या अन्य उत्तराधिकारी का उस ज़मीन पर बराबर का हक़ होता है। कोई भी एक व्यक्ति, चाहे वह जमीन का कागजी मालिक क्यों न हो, इस तरह की संपत्ति को सभी की लिखित सहमति के बिना नहीं बेच सकता।
2. बंटवारा और रजिस्ट्री (जमाबंदी) की प्रक्रिया
संपत्ति को बेचना तब ही सुरक्षित होता है जब पहले उसका कानूनी बंटवारा हो जाए। इसे पारिवारिक समझौता (Family Settlement) या कोर्ट द्वारा घोषित बंटवारा कहा जाता है। बंटवारे के बाद, ज़मीन की जमाबंदी करवाई जाती है जिसमें यह दर्ज होता है कि किस हिस्से पर किस वारिस का नाम और अधिकार है। बिना इस प्रक्रिया के संपत्ति बेचना भविष्य में कानूनी पेंच फंसा सकता है।
3. विवाद होने पर सिविल कोर्ट है उपाय
अगर कोई वारिस बिना बाकी सदस्यों की जानकारी या अनुमति के जमीन बेच देता है, तो अन्य वारिस इस पर आपत्ति जता सकते हैं। वे सिविल कोर्ट में स्टे ऑर्डर (अस्थायी रोक) लगवा सकते हैं या बंटवारे की अर्जी देकर उस बिक्री को चुनौती दे सकते हैं। यह मामला तब और गंभीर हो जाता है जब फर्जी दस्तावेज़ या गलत जानकारी के आधार पर बिक्री की जाती है।
4. गलत बिक्री पर हो सकती है आपराधिक कार्रवाई
यदि यह साबित हो जाए कि जमीन की बिक्री में धोखाधड़ी या जालसाजी हुई है (जैसे किसी वारिस के दस्तावेज़ फर्जी बनाए गए हों), तो संबंधित व्यक्ति के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज हो सकता है। विभिन्न धाराओं के तहत FIR भी दर्ज हो सकती है, जो ज़मानती या गैर-जमानती हो सकती है, केस की प्रकृति पर निर्भर करता है।
5. नाबालिग वारिस की स्थिति
अगर संपत्ति में कोई वारिस नाबालिग है, तो उसकी तरफ से कोई भी निर्णय अभिभावक या कोर्ट द्वारा नियुक्त संरक्षक ही ले सकता है। बिना कोर्ट की अनुमति के नाबालिग की हिस्सेदारी को बेचना कानूनी रूप से वैध नहीं माना जाता।
6. कानूनी सलाह लेना क्यों है जरूरी?
पैतृक संपत्ति से जुड़े मामलों में कानूनी गलती से बचने के लिए किसी अनुभवी वकील से सलाह लेना हमेशा बेहतर होता है। खासकर तब जब परिवार के कई सदस्य विदेश में हों, दस्तावेज़ पुराने हों, या पहले से कोई विवाद चला आ रहा हो।
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