यूपी में इन शिक्षकों का भविष्य खतरे में, पदोन्नति भी रुकी

लखनऊ। उत्तर प्रदेश के परिषदीय विद्यालयों में कार्यरत हजारों शिक्षक और कर्मचारी इन दिनों एक गंभीर संकट का सामना कर रहे हैं। यह संकट न तो किसी नई नीति का नतीजा है और न ही बजट में कटौती का, बल्कि यह डिजिटल प्रबंधन की लापरवाही का परिणाम है। राज्य सरकार द्वारा शिक्षकों की सेवा पुस्तिकाओं के प्रबंधन के लिए लागू किया गया मानव संपदा पोर्टल इन शिक्षकों के लिए वरदान बनने की बजाय अब उनके भविष्य की सबसे बड़ी चुनौती बन गया है।

त्रुटिपूर्ण डिजिटल प्रविष्टियां: एक गंभीर प्रशासनिक चूक

करीब तीन हजार से अधिक शिक्षक और कर्मचारी ऐसे हैं जिनकी सेवा संबंधी जानकारियां पोर्टल पर गलत तरीके से दर्ज हैं। इनमें कैडर की ग़लत प्रविष्टि, नियुक्ति तिथि में त्रुटि, और कई मामलों में प्रविष्टियों का अधूरा रह जाना शामिल है। ऐसे में जिन शिक्षकों की नियुक्ति सहायक शिक्षक के रूप में प्राथमिक विद्यालयों में हुई थी, उन्हें पोर्टल पर प्रधानाध्यापक या उच्च प्राथमिक शिक्षक दिखा दिया गया है। वहीं, विज्ञान और गणित के शिक्षकों को भी गलत कैडर में डाल दिया गया है, जिससे उनकी वेतन वृद्धि, पदोन्नति, और विकास के अवसरों पर सीधा असर पड़ रहा है।

ऑफलाइन सेवा पुस्तिकाएं अमान्य, शिक्षक परेशान

सरकार द्वारा ऑफलाइन सेवा पुस्तिकाओं को पूरी तरह निरस्त कर केवल ऑनलाइन प्रविष्टियों को वैध माना गया है। ऐसे में जिन शिक्षकों की जानकारियां गलत दर्ज हैं, उन्हें अवकाश स्वीकृति, वेतनमान निर्धारण, और चयन वेतनमान जैसी प्रक्रियाओं में बाधा का सामना करना पड़ रहा है। यह स्थिति न केवल मानसिक तनाव पैदा कर रही है, बल्कि शैक्षिक व्यवस्था की गुणवत्ता पर भी असर डाल रही है, क्योंकि असंतुष्ट और अनिश्चितता में काम कर रहे शिक्षक छात्रों को प्रभावी शिक्षा देने में कठिनाई महसूस करते हैं।

जवाबदेही से बचता प्रशासन, शिक्षकों की बढ़ी परेशानी

शिक्षकों की मानें तो उन्होंने बार-बार इन गड़बड़ियों को ठीक करने की मांग की है, लेकिन हर बार एनआईसी लखनऊ का हवाला देकर जिम्मेदार अधिकारी अपनी जिम्मेदारी से बचते रहे हैं। यह स्थिति दर्शाती है कि राज्य में डिजिटल योजनाओं के क्रियान्वयन में मजबूत निगरानी और जवाबदेही का अभाव है।

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