रूस का आरोप है कि अमेरिका Countering America’s Adversaries Through Sanctions Act (CAATSA) जैसे कानूनों का इस्तेमाल कर रणनीतिक रूप से उन देशों पर दबाव बना रहा है जो उसके पारंपरिक हथियार खरीदार रहे हैं। कोस्त्युकोव के मुताबिक, अमेरिका चाहता है कि एशिया-प्रशांत क्षेत्र में उसका प्रभाव बढ़े, और इसके लिए वह रूस के साथ हथियार सौदों में रुकावटें डाल रहा है।
रूस की चिंता: गिरता हथियार निर्यात
रूस का यह आरोप ऐसे समय में आया है जब उसका वैश्विक हथियार निर्यात तेजी से घट रहा है। SIPRI की रिपोर्ट के अनुसार, 2014-2018 की तुलना में 2019-2023 के दौरान रूस का हथियार निर्यात करीब 53% घट चुका है। भारत, जो पहले रूस का सबसे बड़ा हथियार खरीदार रहा है, अब धीरे-धीरे फ्रांस, अमेरिका, इजरायल और जर्मनी जैसे देशों की ओर झुक रहा है। इस बदलाव की एक बड़ी वजह रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते सप्लाई में आई रुकावटें और रूस की घरेलू जरूरतों का बढ़ना भी है।
अमेरिका का रणनीतिक हित और भारत की स्थिति
अमेरिका का लक्ष्य स्पष्ट है, वह एशिया में चीन को घेरने के लिए एक मज़बूत सुरक्षा ढांचा बनाना चाहता है जिसमें भारत उसकी अहम कड़ी है। इसी कारण वह नहीं चाहता कि भारत जैसे रणनीतिक साझेदार रूस से गहरे रक्षा संबंध बनाए रखें।
CAATSA का डर दिखाकर अमेरिका कई देशों को अपनी लाइन में लाने की कोशिश कर रहा है। लेकिन भारत की स्थिति थोड़ी जटिल है। एक ओर वह रूस से दशकों पुराने सामरिक रिश्तों को पूरी तरह तोड़ना नहीं चाहता, वहीं दूसरी ओर अमेरिका के साथ रणनीतिक और तकनीकी साझेदारी भी उसके लिए फायदेमंद है। ट्रंप के दूसरे कार्यकाल में भारत पर लगाए गए टैरिफ, खासकर रूसी तेल खरीद के चलते लगाए गए 25% जुर्माने से साफ है कि अमेरिका इस बार ज्यादा आक्रामक रुख अपना रहा है।
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