संघर्ष की पृष्ठभूमि
वर्ष 2023 में जितेंद्र कुमार भारती सहित 10 शिक्षामित्रों ने यह कहते हुए याचिका दाखिल की थी कि वे नियमित शिक्षकों की तरह ही कार्य कर रहे हैं, इसलिए उन्हें समान वेतन मिलना चाहिए। हालांकि, हाईकोर्ट ने 'समान कार्य-समान वेतन' की मांग को तो स्वीकार नहीं किया, लेकिन यह जरूर माना कि शिक्षामित्रों का मौजूदा मानदेय अत्यंत न्यूनतम स्तर पर है। कोर्ट ने राज्य सरकार को निर्देश दिया कि वह एक समिति गठित कर सम्मानजनक मानदेय सुनिश्चित करे।
सरकार की सुस्ती पर नाराज अदालत
समय बीतने के बाद भी सरकार ने इस दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाया। बार-बार सरकार की ओर से केवल यह दलील दी जाती रही कि लगभग 1.4 लाख शिक्षामित्रों की संख्या होने के कारण वित्तीय भार का आकलन किया जा रहा है, और विभिन्न विभागों से विचार-विमर्श जारी है। जब सरकार ने एक बार फिर एक माह की मोहलत मांगी, तो अदालत ने नाराजगी जाहिर की और 18 सितंबर तक अनुपालन हलफनामा दाखिल करने का स्पष्ट आदेश दिया।
यदि आदेश का पालन नहीं
कोर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया है कि अगर सरकार 18 सितंबर तक आदेश का अनुपालन सुनिश्चित नहीं करती है, तो बेसिक शिक्षा के अपर मुख्य सचिव दीपक कुमार, शिक्षा महानिदेशक कंचन वर्मा, निदेशक प्रताप सिंह बघेल और सचिव सुरेंद्र कुमार तिवारी को व्यक्तिगत रूप से कोर्ट में उपस्थित होना पड़ेगा। यह एक सख्त संकेत है कि अदालत अब शिक्षामित्रों की अनदेखी को और अधिक समय तक सहन नहीं करेगी।
शिक्षामित्रों के लिए उम्मीद की किरण
यह फैसला न केवल शिक्षामित्रों की लंबे समय से चली आ रही मांगों के समर्थन में है, बल्कि यह यह भी दर्शाता है कि न्यायालय ने सरकार को अब और विलंब नहीं करने का संकेत दे दिया है। शिक्षामित्र, जो वर्षों से कम मानदेय में स्कूलों में शिक्षण का कार्य कर रहे हैं, अब सम्मानजनक वेतन की आस लगाए बैठे हैं।
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