पुतिन की नरमी और सुरक्षा गारंटी का प्रस्ताव
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने अपने कठोर रुख में कुछ नरमी दिखाई है। पुतिन ने संकेत दिया है कि यदि अमेरिका और यूरोपीय देश यूक्रेन को ऐसी सुरक्षा गारंटी देंगे जो नाटो की ‘कलेक्टिव डिफेंस’ की तरह हो, तो वह इसे स्वीकार कर सकते हैं। इसका मतलब यह है कि यूक्रेन नाटो में शामिल न होकर भी पश्चिमी देशों से सुरक्षा का आश्वासन पा सकता है। यह रूसी पक्ष की अब तक की सबसे बड़ी ‘कमी’ मानी जा रही है और युद्ध को समाप्त करने की दिशा में एक अहम पहल।
पश्चिमी नेताओं की सक्रियता और रणनीति
ट्रंप के इस संदेश के तुरंत बाद फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने नाटो के कई प्रमुख नेताओं के साथ एक वर्चुअल बैठक की, जिसमें यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमिर जेलेंस्की भी शामिल थे। इस बैठक का उद्देश्य था वॉशिंगटन में होने वाले जेलेंस्की के दौरे से पहले एक साझा रणनीति तैयार करना। मैक्रों और अन्य पश्चिमी नेताओं ने इस बात पर जोर दिया कि यूक्रेन की संप्रभुता और सुरक्षा गारंटी उनकी प्राथमिकता है।
यूक्रेन की स्थिति और जमीन विवाद
रूस ने डोनेट्स्क क्षेत्र में नियंत्रण की मांग की थी, लेकिन जेलेंस्की ने स्पष्ट किया कि यूक्रेनी संविधान के तहत ऐसा कोई विकल्प नहीं है। उनका कहना था कि वे अपनी संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता के लिए दृढ़ हैं। हालांकि, वह उम्मीद जता रहे हैं कि व्हाइट हाउस यात्रा के दौरान अमेरिका से बेहतर समर्थन मिलेगा और यह संघर्ष खत्म करने की दिशा में निर्णायक साबित होगा।
क्या ये संकेत शांति की शुरुआत हैं?
यदि अमेरिका, यूरोप और रूस के बीच यह नया समझौता संभव हुआ तो यह न केवल यूक्रेन बल्कि पूरे यूरोपीय क्षेत्र और वैश्विक सुरक्षा के लिए एक बड़ा शांति संदेश होगा। यह कदम नाटो विस्तार विवाद और रूस-यूक्रेन संघर्ष को समाप्त करने में सहायक हो सकता है।
हालांकि, शांति प्रक्रिया जटिल है और इसे लागू करने में कई राजनीतिक, सैन्य और कूटनीतिक चुनौतियां अभी भी मौजूद हैं। फिर भी, ट्रंप के ट्वीट "BIG PROGRESS ON RUSSIA. STAY TUNED!" और पुतिन के नरम रुख ने उम्मीदें जगाई हैं कि इस लंबे युद्ध का अंत निकट हो सकता है।
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