लाभ की समयसीमा:
आपको बता दें की यह व्यवस्था 1 जनवरी 2016 से प्रभावी मानी जाएगी, यानी न्यायिक अधिकारी पिछली तिथि से वेतन वृद्धि के हकदार होंगे। यह उनके वर्तमान वेतन, भविष्य की पेंशन और अन्य वित्तीय लाभों पर सकारात्मक प्रभाव डालेगा।
समानता की ओर कदम:
पटना उच्च न्यायालय की खंडपीठ ने यह स्वीकार किया कि न्यायिक अधिकारियों को वार्षिक वेतन वृद्धि न देना समानता के सिद्धांत के विरुद्ध है। इससे पहले सर्वोच्च न्यायालय ने भी यह व्यवस्था दी थी कि वेतन वृद्धि वर्ष में एक बार नियुक्ति या प्रोन्नति की तिथि के आधार पर होनी चाहिए, लेकिन बिहार सरकार ने अब इस निर्णय के आलोक में बदलाव कर न्यायिक अधिकारियों को राज्यकर्मियों के समकक्ष सुविधा देने का फैसला किया है।
आर्थिक और मनोवैज्ञानिक लाभ:
इस निर्णय से न्यायिक अधिकारियों को वित्तीय मजबूती तो मिलेगी ही, साथ ही यह उनके आत्मसम्मान, मनोबल और कार्य संतुष्टि में भी वृद्धि करेगा। एक समान सेवा संरचना कार्य संस्कृति में पारदर्शिता और निष्पक्षता को बल देती है। बिहार सरकार का यह निर्णय केवल राज्य तक सीमित नहीं रहेगा। यह देशभर की अन्य न्यायिक सेवाओं के लिए भी एक मिसाल बन सकता है। कई राज्यों में अब भी न्यायिक अधिकारियों को राज्य कर्मचारियों के बराबर सुविधाएं नहीं मिलती हैं, जिससे असंतोष और असमानता की स्थिति बनती है।
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