अमेरिका और चीन का अखाड़ा बना पाकिस्‍तान, पढ़ें रिपोर्ट

न्यूज डेस्क। वर्तमान वैश्विक परिदृश्य में पाकिस्तान एक बार फिर से अंतरराष्ट्रीय ताकतों के बीच खींचतान का केंद्र बनता जा रहा है। एक ओर अमेरिका है, जो भू-राजनीतिक प्रभाव को बनाए रखने के लिए पाकिस्तान के सैन्य और कूटनीतिक गलियारों में अपनी जगह बनाने की कोशिश कर रहा है, वहीं दूसरी ओर चीन है, जो पाकिस्तान के संसाधनों को अपने दीर्घकालिक रणनीतिक हितों से जोड़ चुका है। यह टकराव अब केवल सैन्य या राजनयिक नहीं, बल्कि संसाधनों के अधिपत्य की नई दौड़ का रूप ले चुका है।

बलूचिस्तान: एक खजाना और एक संकट

पाकिस्तान के दक्षिण-पश्चिमी प्रांत बलूचिस्तान को अगर केवल एक पिछड़ा इलाका समझा जाए, तो यह एक भारी भूल होगी। यह इलाका विश्व के सबसे समृद्ध खनिज भंडारों में से एक माना जा रहा है, जहां अनुमानित 6 से 8 ट्रिलियन डॉलर की दुर्लभ खनिज संपदा छिपी है। इनमें Rare Earth Elements (REEs)—जैसे डिस्प्रोसियम, टर्बियम और यिट्रियम—शामिल हैं, जो आज की तकनीकी दुनिया में अमूल्य हैं। चाहे वो इलेक्ट्रिक गाड़ियाँ हों, मोबाइल डिवाइसेज़, मिसाइल गाइडेंस सिस्टम या सोलर पैनल, इन सभी में इन खनिजों की केंद्रीय भूमिका होती है।

चीन की रणनीति: निवेश के ज़रिए प्रभुत्व

चीन ने बलूचिस्तान में चीन-पाकिस्तान आर्थिक कॉरिडोर (CPEC) के तहत भारी निवेश किया है। यह सिर्फ आर्थिक नहीं, रणनीतिक निवेश है—चीन इस प्रोजेक्ट के ज़रिए अपने ऊर्जा और खनिज आपूर्ति मार्गों को सुरक्षित करना चाहता है। हालांकि, इस परियोजना को स्थानीय बलूच समूह ‘नव-औपनिवेशिक’ प्रयास मानते हैं, जो उनके अधिकारों और संसाधनों पर हमला है। यही वजह है कि CPEC परियोजनाएं लगातार बलूच विद्रोहियों के निशाने पर हैं।

अमेरिका का रुख: कूटनीतिक समीकरणों की तलाश

दूसरी ओर, अमेरिका अब पाकिस्तान में अपनी खोई हुई पकड़ को फिर से पाने की कोशिश कर रहा है। डोनाल्ड ट्रंप द्वारा पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर को वॉइट हाउस में आमंत्रित करना केवल औपचारिकता नहीं, एक रणनीतिक संकेत है। अमेरिका यह समझता है कि अगर उसे चीन के खनिज प्रभुत्व को चुनौती देनी है, तो पाकिस्तान में अपनी मौजूदगी फिर से मजबूत करनी होगी।

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