भारत-रूस दोस्ती से चिढ़ा अमेरिका, ट्रंप हुए गुस्सा

नई दिल्ली। भारत और रूस के दशकों पुराने रणनीतिक रिश्ते एक बार फिर वैश्विक राजनीति के केंद्र में हैं, और इस बार वजह बना है अमेरिका का बढ़ता असंतोष। खासकर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की ओर से भारत पर लगाए गए 25 प्रतिशत टैरिफ और संभावित 'सेकेंड्री टैरिफ' के ऐलान ने स्पष्ट कर दिया है कि वाशिंगटन, नई दिल्ली की मास्को से बढ़ती नजदीकियों से बेचैन है।

अमेरिका का गुस्सा क्यों?

डोनाल्ड ट्रंप ने बुधवार को भारत पर नए टैरिफ लगाने का ऐलान करते हुए कहा कि 1 अगस्त से भारत से आने वाले उत्पादों पर 25 प्रतिशत शुल्क लगाया जाएगा। साथ ही, उन्होंने चेतावनी दी कि रूस से तेल और हथियार खरीदने के लिए भारत को 'पैनल्टी' भुगतनी होगी। ट्रंप का तर्क है कि भारत चीन के बाद रूस से ऊर्जा और हथियारों का सबसे बड़ा खरीदार है—और यह अमेरिका की वैश्विक रणनीति के खिलाफ जाता है।

ट्रंप प्रशासन का यह कदम उस समय आया है जब अमेरिका पहले ही यूरोप, जापान और अन्य देशों के साथ रूस को आर्थिक रूप से अलग-थलग करने की कोशिश कर रहा है। लेकिन भारत ने इस अमेरिकी दबाव को खारिज करते हुए साफ कर दिया है कि उसकी प्राथमिकता उसके अपने नागरिक हैं, न कि किसी तीसरे देश के भू-राजनीतिक एजेंडे।

भारत की रणनीतिक स्वायत्तता

भारत की विदेश नीति की बुनियाद रणनीतिक स्वायत्तता पर टिकी है। विदेश मंत्री एस. जयशंकर पहले ही स्पष्ट कर चुके हैं कि भारत किसी भी देश से—चाहे वह रूस हो या अन्य—तेल या अन्य संसाधन खरीदेगा, बशर्ते वह सौदा भारत के हित में हो। उन्होंने यहां तक कहा कि अगर यूरोप अपनी ऊर्जा जरूरतों को देखते हुए रूस से गैस खरीद सकता है, तो भारत पर दोहरे मापदंड क्यों लागू किए जा रहे हैं? भारत यह भी समझता है कि रूस उसके लिए केवल एक हथियार आपूर्तिकर्ता नहीं रहा है, बल्कि दशकों से एक भरोसेमंद रणनीतिक सहयोगी रहा है। 

भारत-रूस रक्षा साझेदारी: ऐतिहासिक गहराई

भारत का रूस से सैन्य सहयोग केवल हालिया घटनाओं तक सीमित नहीं है। भारत ने अपने रक्षा ढांचे की नींव में रूसी तकनीक का भरपूर उपयोग किया है—फाइटर जेट्स से लेकर टैंकों, पनडुब्बियों, S-400 एयर डिफेंस और मिसाइल सिस्टम तक। रूस ने कई बार संकट की घड़ी में भारत का साथ दिया है, जब पश्चिमी देश हथियारों की आपूर्ति से पीछे हट गए थे। भारत के लिए यह रिश्ता केवल रणनीतिक नहीं, बल्कि व्यावहारिक भी है। भारतीय सेना की बड़ी तादाद में मौजूद प्लेटफॉर्म्स रूसी मूल के हैं, जिनकी सर्विसिंग, स्पेयर पार्ट्स और अपग्रेड भी रूस ही करता है।

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