भारत-रूस व्यापार में नई उड़ान, अमेरिका को दर्द

नई दिल्ली। भारत और रूस के बीच ऊर्जा व्यापार पिछले कुछ वर्षों में तेजी से गहरा हुआ है। जब से रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते पश्चिमी देशों ने रूस पर आर्थिक प्रतिबंध लगाए हैं, तब से भारत ने रूस से सस्ते कच्चे तेल की बड़ी मात्रा में खरीद शुरू की। लेकिन अब कहानी सिर्फ कच्चे तेल तक सीमित नहीं है। एक और उत्पाद ऐसा है, जिसकी रूस से भारत में आयात हाल के महीनों में तेजी से बढ़ा है—यह है नेफ्था।

नेफ्था क्या है और क्यों है यह जरूरी?

नेफ्था एक पारदर्शी ज्वलनशील तरल हाइड्रोकार्बन है, जिसका इस्तेमाल मुख्य रूप से पेट्रोकेमिकल इंडस्ट्री में होता है। इससे ओलेफिन और एरोमैटिक्स जैसे रसायन बनाए जाते हैं, जो आगे चलकर प्लास्टिक, सिंथेटिक फाइबर, रेजिन और कई अन्य रासायनिक उत्पादों में उपयोग किए जाते हैं। भारत जैसे उभरते औद्योगिक देश के लिए नेफ्था की मांग लगातार बढ़ रही है।

रूस से आयात में भारत की हिस्सेदारी बढ़ी

2025 के पहले छह महीनों में भारत ने रूस से 14 लाख टन से अधिक नेफ्था मंगवाया है। सिर्फ जून महीने में ही रूस से भारत को करीब 2.5 लाख टन नेफ्था भेजा गया, जो भले ही मई की तुलना में 5% कम था, लेकिन कुल मात्रा अब भी काफी अधिक है। भारत पहले यह नेफ्था संयुक्त अरब अमीरात (UAE) से मंगवाता था, लेकिन रूस से मिलने वाला माल काफी सस्ता है। यही कारण है कि भारत अब अपने ट्रेडिंग पैटर्न में बदलाव कर रहा है।

वैश्विक व्यापार का बदलता भूगोल

यूरोपियन यूनियन द्वारा फरवरी 2023 में रूस से तेल उत्पादों के आयात पर बैन लगाने के बाद, रूस ने अपनी रणनीति बदली और एशियाई देशों की ओर रुख किया। अब भारत, ताइवान, सिंगापुर, मलेशिया, तुर्की और चीन जैसे देश रूसी नेफ्था के बड़े खरीदार बनकर उभरे हैं। 

आगे क्या हो सकता है?

भारत की रणनीति साफ है: जरूरतों के हिसाब से सस्ते और भरोसेमंद स्रोतों से आयात करना। यदि रूस वैश्विक बाजार में प्रतिस्पर्धी दामों पर उत्पाद देता रहा, तो भारत समेत अन्य एशियाई देश इसी दिशा में आगे बढ़ सकते हैं। यह बदलाव सिर्फ आर्थिक नहीं, बल्कि भूराजनीतिक असर भी डालता है—खासकर अमेरिका और यूरोपीय देशों की चिंता को बढ़ाते हुए।

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