ट्रंप प्रशासन की यह नीति व्यापार को एक राजनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल करने की कोशिश है। उन्होंने पहले भी कई देशों पर आयात शुल्क लगाकर अपनी मांगें मनवाने का प्रयास किया है। चीन, यूरोपीय संघ और अन्य कई देशों को इस नीति का सामना करना पड़ा है, लेकिन भारत ने इस दबाव में आने के बजाय अपने रुख को मजबूती से कायम रखा है।
भारत का सख्त रुख
भारत ने विशेष रूप से खेती और डेयरी उत्पादों के मामले में कोई समझौता नहीं किया। अमेरिकी मांगों के तहत भारत के डेयरी बाजार को खोलने की कोशिशें हुईं, लेकिन भारत ने साफ कर दिया कि वह अपनी सांस्कृतिक और धार्मिक संवेदनाओं के खिलाफ किसी भी तरह का समझौता नहीं करेगा। डेयरी उत्पादों के आयात से देश के छोटे और मध्यम डेयरी व्यवसाय को गंभीर नुकसान हो सकता था, इसलिए यह भारत के लिए एक संवेदनशील मुद्दा रहा। वहीं, खेती के क्षेत्र में भी भारत ने अपने किसानों की सुरक्षा को प्राथमिकता दी है। जीएम फसलों के मामले में भी कोई ढील नहीं दी गई, जिससे किसानों की आजीविका पर नकारात्मक असर न पड़े। डिजिटल क्षेत्र में भारत ने डेटा को देश में ही संग्रहित करने के नियम पर भी अडिग रहते हुए अपनी डेटा सुरक्षा नीति को बनाए रखा।
ट्रंप की चेतावनी
ट्रंप ने यह भी चेतावनी दी है कि यदि भारत रूस के साथ अपने रक्षा और ऊर्जा संबंधों को बढ़ाता है तो उस पर और भी कड़े प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं। बावजूद इसके, भारत ने अपनी विदेश नीति और राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता दी है। यह दिखाता है कि भारत अब वैश्विक मंच पर अपनी आर्थिक और राजनीतिक ताकत को आत्मविश्वास के साथ पेश करने के लिए तैयार है।
व्यापार युद्ध में भारत की जीत?
ट्रंप की टैक्स नीति का मकसद भारत को अपनी शर्तें मानने पर मजबूर करना था, लेकिन भारत ने अपने हितों से समझौता करने से साफ इनकार कर दिया। यह दिखाता है कि भारत अब किसी भी विदेशी दबाव के सामने झुकने वाला देश नहीं रहा। आर्थिक नुकसान के बावजूद भारत ने अपने किसानों, उद्योगों और सांस्कृतिक पहचान की रक्षा को सर्वोपरि रखा। इस पूरी स्थिति से यह साफ होता है कि भारत अब एक मजबूत और आत्मनिर्भर राष्ट्र के रूप में विश्व के सामने खड़ा है। यह न केवल आर्थिक मामलों में बल्कि राजनीतिक और कूटनीतिक मोर्चों पर भी अपनी स्थिति को मजबूत कर रहा है।
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