रोशनी की दोहरी पहचान: तरंग या कण?
हर दिन हम रोशनी देखते हैं — सूरज की किरणें, बल्ब की चमक, मोबाइल की स्क्रीन। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि यह रोशनी असल में है क्या? वैज्ञानिकों ने पाया कि कभी यह तरंगों की तरह बर्ताव करती है, तो कभी कणों की तरह। यही विरोधाभास डबल स्लिट (दो छेद वाला) प्रयोग से सामने आया, जिसने दुनिया को चौंका दिया।
डबल स्लिट प्रयोग: एक रहस्य से भरी खिड़की
यह प्रयोग दिखाता है कि अगर आप रोशनी को एक दीवार में बने दो बारीक छेदों से गुजारें, तो पीछे स्क्रीन पर जो पैटर्न बनता है, वह ऐसा होता है जैसे पानी की लहरें आपस में टकराकर बनाती हैं। यानी रोशनी तरंगों की तरह व्यवहार करती है। लेकिन जब हम इसे मापने की कोशिश करते हैं — यानी "देखते हैं" कि रोशनी का कण किस छेद से गया — तो यह तरंगों की बजाय कणों की तरह पेश आती है। यह बहुत अजीब है, मानो प्रकृति हमारी निगाहों से अपनी सच्चाई बदल देती है।
आइंस्टीन की सोच और बोहर की चुनौती
1927 में, आइंस्टीन ने तर्क दिया था कि फोटॉन (रोशनी के कण) जब दो छेदों से गुजरते हैं, तो वे किसी न किसी तरह का "निशान" छोड़ते हैं — कोई ऐसा संकेत जिसे मापा जा सके। उनका मानना था कि ब्रह्मांड पूरी तरह अनिश्चित नहीं हो सकता, और हमें बस कुछ छिपे हुए डेटा की जानकारी नहीं है। बोहर ने इसका विरोध किया। उनका कहना था कि क्वांटम दुनिया की बुनियाद ही अनिश्चितता है — आप किसी कण की स्थिति और वेग दोनों को एक साथ सटीक रूप से नहीं जान सकते।
MIT का नया प्रयोग: आइंस्टीन को मिला जवाब
अब MIT के शोधकर्ताओं ने इस प्रयोग को पहले से कहीं ज्यादा सटीक ढंग से दोहराया — इस बार अत्यंत ठंडे परमाणुओं और सिंगल फोटॉनों का इस्तेमाल कर। उन्होंने देखा कि जब एक-एक फोटॉन को भेजा गया, तो उसने कोई भी निशान नहीं छोड़ा — न यह बताया कि वह किस छेद से गया, और न ही यह कि वह “कण” की तरह ही बर्ताव कर रहा है। इससे यह स्पष्ट हुआ कि आइंस्टीन की उम्मीदों के विपरीत, क्वांटम दुनिया सचमुच उतनी ही रहस्यमयी और अनिश्चित है, जितनी बोहर ने कही थी। फोटॉन न तो पूरी तरह कण हैं, न पूरी तरह तरंग — वे दोनों हैं, लेकिन तब ही जब आप उन्हें मापते नहीं।
इस खोज का क्या मतलब है?
MIT का यह प्रयोग महज़ एक पुरानी बहस का अंत नहीं है, बल्कि भविष्य की कई संभावनाओं की शुरुआत है। यह शोध क्वांटम कंप्यूटर, सिक्योर कम्युनिकेशन (क्रिप्टोग्राफी), और अति-संवेदनशील मापन तकनीकों में क्रांति ला सकता है। और इससे भी बड़ी बात यह है कि यह हमें फिर से याद दिलाता है कि प्रकृति कोई खुली किताब नहीं है, बल्कि एक रहस्यमय कविता है, जिसे हम जितना पढ़ते हैं, उतना ही नया अर्थ मिलता है।
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