ब्रिक्स का उभार: आंकड़ों से जानिए पूरी डिटेल
जहाँ एक ओर जी-7 देशों की वैश्विक उत्पादन में हिस्सेदारी घटकर 28% रह गई है, वहीं ब्रिक्स देशों ने 35% हिस्सेदारी के साथ उन्हें पीछे छोड़ दिया है। वैश्विक जीडीपी में ब्रिक्स का योगदान 40% तक पहुँच गया है और यह देश 49.5% वैश्विक आबादी का प्रतिनिधित्व करते हैं। यह तथ्य इस बात का संकेत हैं कि अब आर्थिक शक्ति का संतुलन पश्चिम से हटकर दक्षिण और पूर्व की ओर झुक रहा है।
अमेरिका की नीतियाँ और ब्रिक्स की एकजुटता
अमेरिका की टैरिफ नीतियाँ और व्यापार को हथियार की तरह इस्तेमाल करने की प्रवृत्ति, ब्रिक्स देशों को और अधिक एकजुट कर रही हैं। डोनाल्ड ट्रंप के कार्यकाल के दौरान भारत और ब्राजील पर लगाए गए भारी टैरिफ, इस दिशा में एक महत्वपूर्ण उदाहरण हैं। इन देशों ने इन टैरिफ को न केवल अनुचित करार दिया, बल्कि अमेरिका की दबाव नीति का भी खुला विरोध किया। चीन और रूस ने भी अमेरिका की आर्थिक धमकी की रणनीति के खिलाफ मुखर होकर विरोध जताया है।
भारत की भूमिका: एक निर्णायक नेतृत्व
भारत न केवल ब्रिक्स का संस्थापक सदस्य है, बल्कि हाल के वर्षों में इस संगठन के भीतर अपनी भूमिका को नई ऊंचाइयों पर ले गया है। रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान अमेरिका के दबाव के बावजूद भारत ने रूस से तेल की खरीदारी जारी रखी, जो इस बात का स्पष्ट संकेत है कि भारत अब अपने फैसले स्वतंत्र रूप से ले रहा है और वैश्विक कूटनीति में मजबूती से उभर रहा है। 2026 में भारत ब्रिक्स की अध्यक्षता करेगा, जो उसके कूटनीतिक नेतृत्व को और मजबूती देगा।
दुनिया में जी-7 की घटती चमक
जी-7 एक समय में वैश्विक अर्थव्यवस्था का पर्याय हुआ करता था। 1980 में इसकी वैश्विक जीडीपी में हिस्सेदारी 50% थी, जो अब घटकर मात्र 28.5% तक रह गई है। इसके अलावा, यह समूह केवल 9.6% वैश्विक आबादी का प्रतिनिधित्व करता है। ऐसे में इसके फैसले अब उस व्यापकता और प्रतिनिधित्व के साथ नहीं लिए जा सकते, जो आज की बहुध्रुवीय दुनिया की मांग है।
ब्रिक्स का विस्तार और संभावनाएँ
2011 में दक्षिण अफ्रीका के जुड़ने के बाद BRIC से BRICS बना, और अब मिस्र, इथियोपिया, इंडोनेशिया, ईरान व यूएई जैसे देशों के शामिल होने से इसकी सदस्य संख्या 10 तक पहुँच गई है। यह विस्तार बताता है कि ब्रिक्स अब केवल एक आर्थिक समूह नहीं, बल्कि एक वैश्विक मंच बनता जा रहा है जो दक्षिण के देशों की आवाज बन सकता है।
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