7वें वेतन आयोग से तुलना: क्या 8वें में भी उतनी ही देर?
7वें वेतन आयोग की घोषणा सितंबर 2013 में हुई थी, जबकि इसकी सिफारिशें लागू होने में करीब 2 साल 9 महीने लग गए थे। नया वेतन ढांचा 1 जनवरी 2016 से लागू किया गया। इस बार भी यदि जनवरी 2025 में 8वें आयोग का गठन होता है, तो सिफारिशों को अंतिम रूप देने और लागू करने में 2027 के अंत या 2028 की शुरुआत तक का समय लग सकता है।
हालांकि इस बार सरकारी कामकाज में डिजिटलीकरण और डेटा एनालिटिक्स के कारण कुछ प्रक्रियाएँ तेज हो सकती हैं, फिर भी प्रारंभिक देरी (ToR और टीम की घोषणा में) पूरे शेड्यूल को पीछे धकेल रही है। जिससे कर्मचारियों में चिंता हैं।
कर्मचारियों की उम्मीदें और चिंताएँ
केंद्रीय कर्मचारियों और पेंशनर्स की एक बड़ी आबादी का जीवनस्तर इस आयोग की सिफारिशों पर निर्भर करता है। महंगाई की तेज़ रफ्तार के मुकाबले वेतन और पेंशन में अबतक कोई बड़ा सुधार नहीं हुआ है। पिछली बार 7वें वेतन आयोग से बेसिक पे, HRA और अन्य अलाउंस में उल्लेखनीय बढ़ोतरी हुई थी, जिससे लाखों कर्मचारियों को राहत मिली थी। अब भी यही उम्मीद की जा रही है कि 8वां वेतन आयोग मूल वेतन में वृद्धि, नई पे-मैट्रिक्स, और बेहतर ग्रेच्युटी नियमों की सिफारिश करेगा। लेकिन देरी को लेकर कर्मचारियों में निराशा और नाराजगी बढ़ रही है।
सरकार की स्थिति: घोषणा के बाद भी ठहराव क्यों?
वित्त राज्य मंत्री पंकज चौधरी ने राज्यसभा में हाल ही में बताया कि सरकार को विभिन्न पक्षों से सुझाव प्राप्त हुए हैं और जल्द ही औपचारिक अधिसूचना जारी की जाएगी। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि आयोग को अपनी सिफारिशें उस टाइमलाइन में ही देनी होंगी जो ToR में निर्धारित की जाएगी। लेकिन ज़मीनी हकीकत यह है कि आठ महीने बीतने के बाद भी कोई ठोस कार्यवाही शुरू नहीं हुई है, जिससे कर्मचारियों को यह लग रहा है कि प्रक्रिया सही समय पर पूरी नहीं हो पाएगी।
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