दरअसल, परमाणु बम जहां यूरेनियम या प्लूटोनियम के विखंडन से काम करता है, वहीं हाइड्रोजन बम में दोहरे चरण की प्रक्रिया होती है। पहले न्यूक्लियर फिशन और फिर फ्यूजन। यही कारण है कि इसकी विनाशकारी क्षमता कई गुना अधिक होती है।
कौन-कौन देश हैं हाइड्रोजन बम के मालिक?
हाइड्रोजन बम बनाना न केवल तकनीकी रूप से बेहद जटिल है, बल्कि इसके लिए अरबों डॉलर की लागत भी आती है। यही वजह है कि दुनिया के केवल गिने-चुने देशों ने ही इसे सफलतापूर्वक विकसित किया है। कुछ ही देशों के पास ये बम आधिकारिक रूप से मौजूद हैं।
अमेरिका: हाइड्रोजन बम का पहला सफल परीक्षण अमेरिका ने 1952 में 'आइवी माइक' नाम से किया था। आज अमेरिका के पास हजारों परमाणु हथियार हैं, जिनमें कई हाइड्रोजन बम भी शामिल हैं। B-41 और B-83 जैसे हथियार इसकी क्षमता के उदाहरण हैं। आधुनिक तकनीक से लैस इसकी मिसाइलें इसे एक अजेय शक्ति बनाती हैं।
रूस: रूस ने 1955 में पहला परीक्षण किया और 1961 में ‘त्सार बोम्बा’ नामक अब तक का सबसे शक्तिशाली हाइड्रोजन बम फोड़ा, जिसकी शक्ति 50 मेगाटन थी। रूस के पास परमाणु हथियारों का सबसे बड़ा भंडार है और उसकी मिसाइल टेक्नोलॉजी उसे वैश्विक स्तर पर सबसे बड़ा खतरा बनाती है।
चीन, फ्रांस और ब्रिटेन: ये तीनों देश भी सफलतापूर्वक हाइड्रोजन बम विकसित कर चुके हैं। चीन का हथियार भंडार तेजी से बढ़ रहा है, जबकि ब्रिटेन और फ्रांस आधुनिक, सीमित लेकिन घातक हथियारों पर ध्यान दे रहे हैं। ब्रिटेन की ट्राइडेंट मिसाइल प्रणाली इसे समुद्र से भी हमला करने की क्षमता देती है।
उत्तर कोरिया: उत्तर कोरिया ने 2017 में हाइड्रोजन बम के परीक्षण का दावा किया था। हालांकि इसकी शक्ति को लेकर संशय बना हुआ है। फिर भी, इसका मिसाइल कार्यक्रम और लगातार उकसावे वाले परीक्षण चिंता का विषय हैं।
भारत और पाकिस्तान की स्थिति क्या है?
भारत ने 1998 में पोखरण परीक्षण के दौरान थर्मोन्यूक्लियर डिवाइस का दावा किया था, लेकिन इसकी पूर्ण पुष्टि नहीं हो पाई। पाकिस्तान के पास भी कई परमाणु हथियार हैं, मगर हाइड्रोजन बम की तकनीक की पुष्टि अभी तक नहीं हुई है।
इजरायल: इजरायल अपनी परमाणु नीति पर चुप्पी साधे हुए है। विशेषज्ञों का मानना है कि उसके पास न्यूक्लियर हथियार हैं, लेकिन हाइड्रोजन बम के बारे में कोई आधिकारिक जानकारी उपलब्ध नहीं है।
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