तेज़ी से बढ़ता व्यापार
वित्त वर्ष 2024-25 में भारत और चीन के बीच कुल व्यापार लगभग 127.75 अरब अमेरिकी डॉलर का रहा, जिसमें से भारत का निर्यात 14.25 अरब डॉलर था, जबकि आयात 113.5 अरब डॉलर तक पहुँच गया। यह दर्शाता है कि भारत को चीन से जो माल मिल रहा है, उसकी मात्रा और मूल्य, उसके चीन को भेजे जा रहे सामान की तुलना में कहीं अधिक है।
2025-26 की शुरुआत यानी अप्रैल से जुलाई तक ही भारत का निर्यात 19.97% की वृद्धि के साथ 5.75 अरब डॉलर पर पहुँच चुका है, जबकि आयात 13.06% बढ़कर 40.65 अरब डॉलर हो गया है। यह रुझान बताता है कि व्यापार की गति तेज है, लेकिन संतुलन की दिशा में कोई उल्लेखनीय सुधार नहीं हो रहा।
व्यापार घाटा: एक पुरानी लेकिन गंभीर चुनौती
2003-04 में चीन के साथ व्यापार घाटा मात्र 1.1 अरब डॉलर था, जो अब बढ़कर 99.2 अरब डॉलर हो गया है। यह एक कई गुना वृद्धि है जो भारत की आयात निर्भरता को उजागर करती है। चीन अब भारत के कुल व्यापार घाटे का लगभग एक तिहाई हिस्सा बन चुका है।
विशेषज्ञों के अनुसार, यह घाटा महज़ संख्यात्मक नहीं, बल्कि संरचनात्मक रूप से असंतुलित है। इसका अर्थ यह है कि चीन से आयात मुख्य रूप से मशीनरी, इलेक्ट्रॉनिक्स, रसायन, फार्मास्यूटिकल्स और अन्य उच्च-तकनीकी क्षेत्रों में केंद्रित है, जबकि भारत का चीन को निर्यात कच्चे माल या कम-मूल्य वाली वस्तुओं तक सीमित है।
भारत के लिए क्या है रणनीतिक चिंताएं?
भारत सरकार ने कई बार चीनी बाजार में गैर-व्यापारिक बाधाओं (जैसे मानक, मंजूरी प्रक्रिया और भाषा संबंधी अड़चनें) को लेकर अपनी आपत्तियाँ जताई हैं। भारतीय उत्पादों को चीन में प्रवेश दिलाना मुश्किल होता जा रहा है, जबकि चीनी सामान भारत में बिना बड़ी रुकावटों के प्रवेश कर रहे हैं।
भारत का चीन में निर्यात पिछले दो दशकों में 42.3% से घटकर मात्र 11.2% रह गया है। यह स्पष्ट संकेत है कि भारत न केवल व्यापार घाटे का सामना कर रहा है, बल्कि वैश्विक सप्लाई चेन में चीन के मुकाबले प्रतिस्पर्धा में पिछड़ भी रहा है।

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