द्विपक्षीय रिश्तों को नई दिशा
पिछले कुछ वर्षों में भारत-रूस संबंधों में गहराई आई है। प्रधानमंत्री मोदी के पिछले साल रूस के दो दौरे और दोनों देशों के बीच हुए कई शिखर सम्मेलनों ने इस रिश्ते को मजबूती प्रदान की है। इस बार पुतिन की यात्रा को विशेष महत्व इसलिए भी दिया जा रहा है क्योंकि यह दोनों नेताओं के बीच पहली आमने-सामने की बैठक होगी, जबकि पहले वे नियमित रूप से टेलीफोन पर संवाद करते रहे हैं।
दिसंबर के दौरे के दौरान रक्षा, ऊर्जा, व्यापार, विज्ञान, तकनीक और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर सहयोग के कई अहम समझौतों को अंतिम रूप दिए जाने की संभावना है। विशेषज्ञों का मानना है कि यूक्रेन युद्ध और उससे प्रभावित वैश्विक राजनीति के बीच भारत-रूस संबंध नई दिशा में जा रहे हैं। भारत की तटस्थ कूटनीति और रूस के साथ मजबूत रक्षा साझेदारी इस दौरे को सामरिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण बनाती है।
अमेरिका और पश्चिमी देशों की चिंताएँ
पुतिन का भारत दौरा अमेरिका और पश्चिमी देशों के लिए चिंता का विषय है, जो रूस के अंतरराष्ट्रीय दबाव को कम करने की कोशिशों को टक्कर देने वाला कदम समझते हैं। अमेरिका की विदेश नीति को इस दौरे ने काफ़ी प्रभावित किया है क्योंकि भारत के साथ रूस की बढ़ती निकटता से वैश्विक शक्ति संतुलन में बदलाव की आशंका जताई जा रही है।
पुतिन के भारत दौरे से एशिया में चीन की बढ़ती भूमिका के बीच शक्ति संतुलन और रणनीतिक साझेदारी के नये आयाम उभरेंगे। रूस के लिए भारत एक भरोसेमंद भागीदार बनता जा रहा है, जो पश्चिमी प्रतिबंधों के बीच उसकी कूटनीतिक और आर्थिक स्थिति को मजबूत कर सकता है।
भारत-रूस के भविष्य की संभावनाएँ
भारत-रूस की यह रणनीतिक साझेदारी न केवल दोनों देशों के लिए फायदेमंद है, बल्कि क्षेत्रीय स्थिरता और वैश्विक राजनीतिक परिदृश्य पर भी इसका गहरा प्रभाव पड़ेगा। ऊर्जा सुरक्षा, रक्षा तकनीक, और आर्थिक सहयोग के अलावा दोनों देशों के बीच रणनीतिक संवाद और बढ़ने की संभावना है।
पुतिन का यह दौरा दोनों देशों के बीच कूटनीतिक रिश्तों में एक नई क्रांति साबित हो सकता है, जो भारत की वैश्विक कूटनीति में उसकी भूमिका को और मजबूती प्रदान करेगा। साथ ही, यह दौरा रूस को वैश्विक स्तर पर अपनी स्थिति मजबूत करने में भी सहायक होगा।
0 comments:
Post a Comment