रूस और भारत में हो सकती है S-500 डील, चीन सन्न

नई दिल्ली। भारत और रूस के बीच रक्षा क्षेत्र में गहराता सहयोग एक नए मुकाम की ओर बढ़ रहा है। हाल ही में ऐसी खबरें सामने आई हैं कि रूस भारत को अपने अत्याधुनिक एयर डिफेंस सिस्टम S-500 बेचने पर विचार कर रहा है। यह कदम वैश्विक सुरक्षा संतुलन के लिहाज से न केवल महत्वपूर्ण है, बल्कि इससे एशिया में शक्ति संतुलन भी बदल सकता है। खासकर ऐसे समय में जब रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन यूक्रेन युद्ध के बाद पहली बार भारत के दौरे पर आ रहे हैं, यह डील रणनीतिक रूप से बेहद अहम मानी जा रही है।

क्यों खास है S-500 एयर डिफेंस सिस्टम?

S-500 सिस्टम को दुनिया का सबसे उन्नत मल्टी-लेयर एयर डिफेंस सिस्टम माना जाता है। यह सिर्फ पारंपरिक लड़ाकू विमानों या क्रूज़ मिसाइलों को ही नहीं, बल्कि हाइपरसोनिक मिसाइलों, स्टील्थ फाइटर जेट, और यहां तक कि नीचली कक्षा में स्थित सैटेलाइट को भी मार गिराने में सक्षम है। इसकी ट्रैकिंग रेंज 600 किमी तक है और यह 500 किमी तक की दूरी पर बैलिस्टिक मिसाइलों को इंटरसेप्ट कर सकता है। इतना ही नहीं, इसका रेस्पॉन्स टाइम भी केवल 3-4 सेकंड है, जो इसे बेहद कुशल और खतरनाक बनाता है।

तकनीक ट्रांसफर: भारत के लिए सुनहरा अवसर

इस डील की एक बड़ी खासियत यह है कि रूस S-500 की तकनीक को भारत को ट्रांसफर करने पर भी राजी हो सकता है। इसका मतलब है कि भारत इस प्रणाली के रडार, इंटरसेप्टर मिसाइल और कमांड यूनिट्स को देश में ही निर्माण कर सकेगा। इससे न सिर्फ आत्मनिर्भर भारत अभियान को बल मिलेगा, बल्कि भारत मध्य एशिया, मिडिल ईस्ट और अफ्रीका जैसे क्षेत्रों में S-500 को एक्सपोर्ट भी कर सकेगा, जो रूस पर लगे पश्चिमी प्रतिबंधों की वजह से सीधे रूस से खरीद नहीं पा रहे हैं।

क्यों चिंतित हैं अमेरिका, चीन और पाकिस्तान?

भारत की रूस से नजदीकी अमेरिका को खटकती रही है, खासकर यूक्रेन युद्ध के बाद। अमेरिका पहले ही भारत को रूस से तेल खरीदने पर टैरिफ लगाने की धमकी दे चुका है। अब S-500 जैसी डील वाशिंगटन की रणनीति को और असहज कर सकती है। वहीं, चीन ने अपनी DF-21D और DF-26 जैसी मिसाइलों को हाइपरसोनिक श्रेणी में विकसित किया है। S-500 की तैनाती चीन की मिसाइल शक्ति पर एक प्रतिरोधक प्रभाव डाल सकती है। इसके अलावा, S-500 की क्षमता चीन के स्टील्थ जेट्स को भी बेअसर कर सकती है। जबकि पाकिस्तान पहले ही S-400 के सामने जेएफ-17 और अन्य मिसाइल सिस्टम की असफलता देख चुका है।

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