अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के बीच अलास्का में एक अहम और बंद कमरे की मीटिंग हुई, जिसमें दोनों नेताओं ने करीब तीन घंटे तक यूक्रेन युद्ध को लेकर बातचीत की। लेकिन इस मीटिंग के बाद भी किसी तरह की युद्धविराम घोषणा नहीं हुई।
ट्रंप और पुतिन दोनों ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की, लेकिन पत्रकारों के किसी सवाल का जवाब नहीं दिया। ट्रंप ने मीटिंग को "सकारात्मक" बताया, जबकि पुतिन ने रूस की सुरक्षा को प्राथमिकता देने की बात दोहराई। हालांकि, इस बातचीत का असली सार पुतिन की उन पांच बड़ी शर्तों में छिपा है, जिनके बिना रूस किसी भी तरह की शांति वार्ता के लिए तैयार नहीं दिखता।
पुतिन की 5 बड़ी शर्तें जो शांति की राह रोक रही हैं
1. शांति केवल मेरी शर्तों पर होगी
पुतिन स्पष्ट कर चुके हैं कि रूस सिर्फ अपनी शर्तों पर ही युद्ध रोकने के लिए तैयार है। उनका मानना है कि यूक्रेन की विदेश नीति और रक्षा नीति पूरी तरह से रूसी हितों के अनुरूप होनी चाहिए ताकि भविष्य में कोई सैन्य खतरा न बने।
2. कब्जा की गई ज़मीन रूस की रहेगी
रूस पहले ही यूक्रेन के 22% हिस्से लुहान्स्क, डोनेट्स्क, खेरसन, क्रीमिया और ज़पोरिजिया पर कब्जा जमा चुका है और अब वह एक इंच भी जमीन छोड़ने को तैयार नहीं है। पुतिन के लिए यह इलाका केवल रणनीतिक नहीं, बल्कि राजनीतिक प्रतिष्ठा का भी सवाल बन चुका है।
3. यूक्रेन को नाटो से दूर रखा जाए
रूस की एक बड़ी चिंता है यूक्रेन का नाटो में शामिल होना। पुतिन साफ कह चुके हैं कि यूक्रेन को किसी भी पश्चिमी सैन्य गठबंधन से दूरी बनाकर रखनी होगी। उन्हें डर है कि नाटो की मौजूदगी रूस की सीमाओं पर सीधा खतरा बन सकती है।
4. सभी प्रतिबंध हटाए जाएं
यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद अमेरिका और यूरोपीय देशों ने रूस पर भारी आर्थिक और राजनीतिक प्रतिबंध लगाए हैं। पुतिन की शर्त है कि ये सभी प्रतिबंध हटाए जाएं, और रूस के फ्रीज किए गए 25 लाख करोड़ रुपये के फंड्स को भी तुरंत बहाल किया जाए।
5. एक नई वैश्विक डील
रूस चाहता है कि अमेरिका और यूरोपीय देशों के साथ नई व्यापारिक और कूटनीतिक डील हो। हजारों पश्चिमी कंपनियां रूस छोड़ चुकी हैं, जिससे उसकी अर्थव्यवस्था को झटका लगा है। अब वह चाहता है कि नए समझौतों के ज़रिए उसका वैश्विक कारोबार फिर से पटरी पर लौटे।
क्या शांति की उम्मीद अब भी बाकी है?
इस बैठक में भले ही कोई ठोस नतीजा नहीं निकला हो, लेकिन यह साफ है कि अब अमेरिका और रूस सीधे संवाद की ओर बढ़ रहे हैं। ट्रंप की अगली बातचीत नाटो और यूक्रेन से होने वाली है, जो यह संकेत देती है कि मामला अभी पूरी तरह बंद नहीं हुआ है।
हालांकि पुतिन की शर्तें इतनी सख्त और एकतरफा हैं कि उन्हें मानना यूक्रेन और पश्चिमी देशों के लिए लगभग नामुमकिन होगा। ऐसे में सवाल उठता है, क्या ये शांति की ओर पहला कदम है या सिर्फ एक राजनयिक दबाव बनाने की रणनीति?
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