संकट की घड़ी में 'रूस' ने थामा 'भारत' का हाथ!

नई दिल्ली। भारत और रूस (पूर्व में सोवियत संघ) के संबंध केवल कूटनीतिक या सामरिक नहीं हैं, बल्कि यह रिश्ता गहरे विश्वास, सहयोग और आपसी सम्मान पर आधारित है। जब भी भारत किसी मोड़ पर खड़ा हुआ, रूस ने बिना किसी शर्त उसके साथ खड़े होने का भरोसा दिया। चाहे वो युद्ध का समय हो या औद्योगिक विकास का।

जब सबने किनारा किया, रूस ने साथ निभाया

यूक्रेन युद्ध के बाद पूरी दुनिया ने रूस से दूरी बना ली। अमेरिका और यूरोपीय देशों ने प्रतिबंध लगाए, व्यापारिक रिश्ते तोड़े, लेकिन भारत ने अपने पुराने मित्र को अकेला नहीं छोड़ा। न सिर्फ भारत ने रूस से ऊर्जा जरूरतों के लिए तेल खरीदना जारी रखा, बल्कि वैश्विक मंचों पर संतुलित रुख अपनाकर रूस को पूरी तरह से अलग-थलग पड़ने से भी बचाया। यही वजह है कि आज अमेरिका भारत की इस स्वतंत्र विदेश नीति से असहज महसूस करता है और व्यापारिक टैरिफ जैसे दबाव बना रहा है।

औद्योगिक भारत की नींव में रूस की भूमिका

आज का भारत अगर एक उभरती औद्योगिक शक्ति है, तो उसकी बुनियाद में रूस (तत्कालीन सोवियत संघ) की गहरी भागीदारी रही है। विशेष रूप से भारत के भारी उद्योग और स्टील उत्पादन में रूस की मदद निर्णायक रही। जिसने मजबूत भारत की नीब रखी।

1. भिलाई स्टील प्लांट: भारत-रूस सहयोग की मिसाल

1955 में भारत और सोवियत संघ के बीच एक ऐतिहासिक समझौता हुआ, जिसके तहत छत्तीसगढ़ के भिलाई में एक विशाल स्टील प्लांट की स्थापना की गई। इसमें रूस ने तकनीकी डिज़ाइन, मशीनरी और प्रशिक्षण की संपूर्ण सहायता दी। यह प्लांट आज भी भारत के सबसे प्रमुख स्टील संयंत्रों में से एक है और SAIL का गौरव है।

2. बोकारो स्टील प्लांट: दूसरा कदम, मजबूत साझेदारी

1960 के दशक में भारत ने एक और बड़ा औद्योगिक कदम उठाया बोकारो स्टील प्लांट की स्थापना। इस बार भी रूस ने भारत के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम किया। यह सहयोग केवल एक संयंत्र तक सीमित नहीं था, बल्कि इसमें तकनीकी कौशल, प्रबंधन प्रशिक्षण और औद्योगिक नीति निर्माण तक शामिल था।

3. दुर्गापुर और राउरकेला में भी छाया सोवियत असर

हालाँकि दुर्गापुर स्टील प्लांट ब्रिटेन और राउरकेला प्लांट पश्चिम जर्मनी की मदद से बने, लेकिन इन दोनों परियोजनाओं में भी सोवियत संघ ने मशीनरी, तकनीकी सलाह और संचालन में मदद दी। भारत के लिए उस समय इतनी बड़ी औद्योगिक परियोजनाएं अकेले सम्भालना मुश्किल था और रूस ने इस कमी को पूरी तरह भर दिया।

एक भरोसेमंद रिश्ता जो समय की कसौटी पर खरा उतरा

भारत-रूस की दोस्ती सिर्फ भूतकाल की बातें नहीं हैं। यह रिश्ता आज भी प्रासंगिक है, चाहे वह रक्षा सौदों की बात हो, ऊर्जा सहयोग, या वैश्विक कूटनीति में एक-दूसरे की जरूरत को समझने की। जहाँ पश्चिमी देश अक्सर अपनी नीतियाँ बदलते रहते हैं, भारत और रूस ने दशकों से एक स्थायी और भरोसेमंद रिश्ता निभाया है। आज जब अमेरिका जैसे देश रूस से दूरी की उम्मीद भारत से करते हैं, तब भारत यह नहीं भूलता कि किसने उसके सबसे कठिन दौर में उसका साथ निभाया था।

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