सरकार के अनुसार, यह कदम बढ़ती महंगाई और जनप्रतिनिधियों के कार्यभार को ध्यान में रखते हुए उठाया गया है। विपक्ष और सत्तापक्ष दोनों ने मिलकर इसे मंजूरी दी, जिससे यह संदेश गया कि यह फैसला राजनीतिक नहीं, बल्कि व्यावहारिक जरूरत के तहत लिया गया है।
क्यों लिया गया यह निर्णय?
यूपी के वित्त मंत्री सुरेश खन्ना के अनुसार, यह निर्णय महंगाई की मौजूदा स्थिति को ध्यान में रखते हुए लिया गया है। मार्च 2025 में गठित एक समिति, जिसमें सत्ता और विपक्ष दोनों के प्रतिनिधि शामिल थे, ने कई दौर की बैठकें कीं। निष्कर्ष यह निकला कि विधायकों और मंत्रियों की वर्तमान आय और सुविधाएं उनके कार्यभार और आवश्यकताओं के अनुरूप नहीं हैं।
क्या-क्या बढ़ा?
वेतन और भत्तों में बढ़ोतरी के कुछ प्रमुख बिंदु:
विधायकों का वेतन: ₹25,000 से बढ़ाकर ₹35,000
मंत्रियों का वेतन: ₹40,000 से ₹50,000
निर्वाचन क्षेत्र भत्ता: ₹50,000 से ₹75,000
दैनिक भत्ता: ₹2,000 से ₹2,500
जनसेवा भत्ता: ₹1,500 से ₹2,000
चिकित्सीय भत्ता: ₹30,000 से ₹45,000
टेलीफोन भत्ता: ₹6,000 से ₹9,000
पेंशन: ₹25,000 से ₹35,000
पारिवारिक पेंशन: ₹25,000 से ₹30,000
पूर्व विधायकों के लिए रेलवे कूपन: ₹1 लाख से बढ़ाकर ₹1.5 लाख
इन सभी में सबसे दिलचस्प बात यह है कि अब पूर्व विधायक रेलवे और हवाई यात्रा के लिए ₹50,000 और निजी गाड़ी के तेल के लिए ₹1 लाख तक नकद ले सकते हैं।
कितना खर्च आएगा?
सरकार पर इस फैसले का वार्षिक बोझ करीब ₹105.21 करोड़ पड़ेगा, जबकि कुल योजना की लागत ₹105.63 करोड़ आंकी गई है। यह भी ध्यान देने वाली बात है कि पिछली बार 2016 में वेतन और भत्तों की समीक्षा की गई थी। यानी नौ साल बाद यह बदलाव आया है।
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