क्यों जरूरी है भारत को नया टैंक?
भारतीय सेना के पास अभी बड़ी संख्या में T-72 टैंक हैं, जो अब तकनीकी रूप से पुराने पड़ चुके हैं। ये टैंक 1970 के दशक की तकनीक पर आधारित हैं और भविष्य की चुनौतियों को झेलने में सक्षम नहीं हैं। हालाँकि, भारत के पास टी-90 भीष्म जैसे अपग्रेडेड प्लेटफॉर्म्स हैं, लेकिन T-14 आर्माटा जैसे अत्याधुनिक टैंक को शामिल करना भारत को भविष्य की युद्ध रणनीतियों में बहुत आगे ले जा सकता है।
T-14 आर्माटा: टेक्नोलॉजी और विशेषताएँ
1 .रिमोट-कंट्रोल्ड टॉरेट: टैंक का मुख्य तोप और हथियार रिमोट से संचालित होते हैं, जिससे क्रू खतरे से बाहर रहता है।
2 .‘अफगानिट’ APS: यह एक सक्रिय सुरक्षा प्रणाली है, जो दुश्मन की एंटी-टैंक मिसाइलों को हवा में ही नष्ट कर देती है।
3 .स्पीड और रेंज: यह टैंक 75–80 किमी प्रति घंटा की स्पीड से दौड़ सकता है और इसकी रेंज लगभग 500 किमी है।
4 .वजन और लागत: इसका वजन 55 टन है और इसकी लागत 30 से 42 करोड़ रुपये के बीच बताई जाती है। भारत में उत्पादन होने पर लागत में कमी संभव है।
5 .आर्मर्ड कैप्सूल: तीन क्रू सदस्य एक बख्तरबंद कैप्सूल में बैठते हैं, जो उन्हें बाहरी हमलों से सुरक्षा देता है।
6 . गाइडेड मिसाइल फायरिंग: टैंक से दागी जाने वाली मिसाइलें 8-10 किमी तक मार कर सकती हैं।
7 .360° मिलिमीटर-वेव रडार: टैंक को हर दिशा से खतरे की जानकारी मिलती रहती है।
रूस की रणनीति और भारत की संभावनाएँ
रूसी कंपनी यूरालवगोनजावॉड ने भारत के साथ पहले ही T-90 टैंक के निर्माण में साझेदारी की है। उसी तर्ज पर अब वह T-14 आर्माटा के लिए भी भारत के रक्षा अनुसंधान संगठनों (जैसे CVRDE) और सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों के साथ भागीदारी करना चाहती है।

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