वैधता पर सवाल क्यों?
रूसी पक्ष की आपत्ति का मुख्य आधार यह है कि ज़ेलेंस्की का आधिकारिक कार्यकाल मई 2024 में समाप्त हो चुका है। यूक्रेनी संविधान के अनुसार, राष्ट्रपति का कार्यकाल पाँच वर्षों का होता है और उसके बाद चुनाव अनिवार्य होते हैं। रूस इसी संवैधानिक प्रावधान को आधार बनाकर यह कहता रहा है कि मौजूदा समय में ज़ेलेंस्की राष्ट्रपति नहीं हैं, और इसलिए उनके साथ कोई भी अंतरराष्ट्रीय समझौता कानूनी रूप से मान्य नहीं हो सकता।
यूक्रेन का पक्ष क्या है?
यूक्रेन इस आरोप का खंडन करता रहा है और उसका कहना है कि देश में युद्धकालीन स्थिति लागू है, जिसके तहत मार्शल लॉ (आपातकालीन कानून) प्रभावी है। इस कानून के अनुसार, जब तक युद्ध समाप्त नहीं होता और चुनाव कराना व्यावहारिक नहीं होता, तब तक मौजूदा राष्ट्रपति को अपने पद पर बने रहने का अधिकार है। यूक्रेन के अनुसार, यही स्थिति ज़ेलेंस्की पर लागू होती है और वे पूरी तरह से वैध राष्ट्राध्यक्ष हैं।
बातचीत की टेबल पर संकट
लावरोव का यह बयान कि उन्हें नहीं पता ज़ेलेंस्की किस कानूनी हैसियत से समझौते पर हस्ताक्षर करेंगे, एक प्रकार से रूस की वार्ता प्रक्रिया में जानबूझकर खींचतान पैदा करने की रणनीति लगती है। यह पहली बार नहीं है जब रूस ने ज़ेलेंस्की की वैधता पर सवाल उठाया हो। इससे पहले भी इस मुद्दे को उठाकर रूस ने शांति वार्ता को पीछे धकेला है। इस बयान से यह साफ झलकता है कि रूस बातचीत के लिए तैयार तो दिखना चाहता है, लेकिन अपनी शर्तों के साथ।
पुतिन से मुलाकात की ज़ेलेंस्की की कोशिशें
लावरोव ने यह भी दावा किया कि ज़ेलेंस्की कई बार राष्ट्रपति पुतिन से सीधे मिलने की कोशिश कर चुके हैं। उन्होंने इसे ज़ेलेंस्की की “वैधता बनाए रखने की एक चाल” बताया। यह बयान दर्शाता है कि रूस ज़ेलेंस्की की किसी भी अंतरराष्ट्रीय मंच पर उपस्थिति को चुनौती देने की रणनीति अपना रहा है, जिससे उनकी वैश्विक मान्यता पर प्रभाव पड़े।
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