यह धमकी सिर्फ बयानबाज़ी नहीं, बल्कि अमेरिका की उस रणनीति का हिस्सा है, जिसके तहत वह रूस की आर्थिक रीढ़ तोड़ना चाहता है। अमेरिका चाहता है कि रूस को यूक्रेन के खिलाफ हथियार और संसाधन जुटाने से रोका जाए, और इसके लिए सबसे पहले उसके ऊर्जा निर्यात पर रोक लगाना ज़रूरी समझा जा रहा है। लेकिन इस कोशिश में सबसे बड़ा रोड़ा बन रहा है भारत—जो अभी भी रूस से रिकॉर्ड मात्रा में सस्ता कच्चा तेल खरीद रहा है।
क्यों खास है भारत-रूस की दोस्ती?
भारत और रूस के बीच संबंध सिर्फ ऊर्जा व्यापार तक सीमित नहीं हैं। यह रिश्ता सामरिक, कूटनीतिक और ऐतिहासिक रूप से काफी गहराई लिए हुए है। शीत युद्ध के समय से लेकर आज तक, रूस ने कई बार अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत का खुला समर्थन किया है। संयुक्त राष्ट्र में कश्मीर जैसे संवेदनशील मुद्दों पर रूस ने भारत का साथ देकर वीटो का इस्तेमाल किया है। इसके अलावा भारत की सैन्य तैयारियों में रूस का योगदान बेहद अहम है—भारत के कई प्रमुख हथियार, लड़ाकू विमान, पनडुब्बियां और मिसाइल सिस्टम रूस से ही आए हैं।
अमेरिका की चिंता क्यों बढ़ रही है?
रूस पर लगाए गए जी-7 देशों के प्रतिबंधों का असर तब तक सीमित रहेगा, जब तक रूस को तेल और गैस से लगातार आय होती रहेगी। भारत, चीन और ब्राज़ील जैसे बड़े देश जब इस तेल को खरीदते हैं, तो यह रूस की अर्थव्यवस्था को सहारा देता है और indirectly यूक्रेन युद्ध को भी। अमेरिका को यही बात खटक रही है और अब वह सीधे तौर पर इन देशों को चेतावनी देकर दबाव बनाने की कोशिश कर रहा है।
भारत की नीति: स्वतंत्र और संतुलित
भारत की विदेश नीति हमेशा ‘रणनीतिक स्वतंत्रता’ पर आधारित रही है। भारत कभी भी किसी एक धड़े या गुट का हिस्सा बनकर चलने वाला देश नहीं रहा। चाहे रूस हो या अमेरिका—भारत दोनों के साथ अपने हितों के अनुसार संबंध रखता है। यही कारण है कि अमेरिका के बार-बार दबाव डालने के बावजूद भारत ने रूस से तेल खरीदना बंद नहीं किया। भारत स्पष्ट रूप से मानता है कि उसकी प्राथमिकता अपने नागरिकों की ऊर्जा जरूरतों को किफायती तरीके से पूरा करना है, और इसके लिए अगर रूस सबसे अच्छा विकल्प है तो उसे अपनाना कोई गलत बात नहीं।
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