न्याओमा एयरबेस: रणनीतिक बढ़त
LAC (लाइन ऑफ़ एक्चुअल कंट्रोल) से केवल 23 किमी की दूरी पर स्थित न्याओमा एयरबेस, भारतीय वायुसेना को सीमाई इलाकों में तत्काल प्रभावी कार्रवाई करने की क्षमता प्रदान करेगा। यह एयरबेस लेह और थोइसे जैसे पुराने और दूरस्थ एयरबेस की तुलना में दुश्मन के ठिकानों पर त्वरित हवाई हमले और बचाव के लिए अधिक कारगर साबित होगा। प्रोजेक्ट हिमानक के तहत भारतीय सीमा सड़क संगठन (BRO) द्वारा लगभग 2.7 किलोमीटर का रनवे बनाया जा रहा है, जो राफेल, सुखोई-30 एमकेआई और LCA तेजस जैसे आधुनिक लड़ाकू विमानों के परिचालन के लिए उपयुक्त होगा।
तकनीकी और सुरक्षा सुविधाएँ
न्याओमा एयरबेस की खासियत इसकी अत्याधुनिक बुनियादी संरचना में निहित है। इस एयरबेस में बम-प्रूफ हैंगर, गोला-बारूद बंकर, मजबूत शेल्टर और आधुनिक एयर ट्रैफिक कंट्रोल टावर जैसे सुरक्षा और संचालन सुविधाएँ होंगी। इस परियोजना का नेतृत्व एक महिला कॉम्बैट इंजीनियर, कर्नल पोनंग डोमिंग कर रही हैं, जो भारतीय सैन्य बलों में महिलाओं की बढ़ती भूमिका का प्रतीक हैं।
चुनौतीपूर्ण जलवायु के लिए विशेष तैयारी
न्याओमा की ऊंचाई और ठंडे वातावरण को देखते हुए भारतीय वायुसेना ने फाइटर जेट इंजनों को इस तरह अनुकूलित किया है कि वे -40°C तक के तापमान में भी पूरी क्षमता से उड़ान भर सकें। यह तकनीकी तैयारी न केवल विमानों की विश्वसनीयता बढ़ाती है बल्कि सीमाई इलाकों में निरंतर और प्रभावी रक्षा सुनिश्चित करती है।
सैन्य सामरिक महत्व
चीन-भारत सीमा पर न्याओमा एयरबेस का निर्माण, सीमा सुरक्षा और रणनीतिक प्रभाव के लिहाज से एक महत्वपूर्ण कदम है। यह एयरबेस भारत को न केवल अपने इलाके की रक्षा के लिए बेहतर तैयार करेगा, बल्कि भविष्य में किसी भी प्रकार की आक्रामकता के जवाब में त्वरित और निर्णायक कार्रवाई करने की क्षमता भी देगा। पाकिस्तान-चीन के सीमा इलाकों के करीब स्थित इस एयरबेस से भारत की सैन्य पकड़ और मजबूती दोनों बढ़ेंगी।
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