रूस की पहल, चीन की हामी
जुलाई के मध्य में रूसी उप विदेश मंत्री आंद्रेई रुडेन्को के बयान ने राजनीतिक हलकों में चर्चा छेड़ दी। उन्होंने कहा कि रूस चाहता है कि RIC को फिर से सक्रिय किया जाए क्योंकि तीनों देश ब्रिक्स (BRICS) के संस्थापक हैं और वैश्विक स्थिरता के लिए अहम भूमिका निभा सकते हैं। इसके बाद रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने भी इस "त्रयी" के लिए अपना समर्थन दोहराया।
जवाब में चीन के विदेश मंत्रालय ने भी इसमें रुचि दिखाई। इस सन्दर्भ में चीन के प्रवक्ता लिन जियान ने इसे क्षेत्रीय और वैश्विक शांति के लिए महत्वपूर्ण बताया। लेकिन इस दोस्ताना बयान के पीछे की मंशा को लेकर भारत में संदेह बना हुआ है।
भारत की प्रतिक्रिया: कूटनीतिक सूझ-बूझ
भारत सरकार ने तुरंत कोई ठोस फैसला नहीं लिया। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा कि "RIC एक ऐसा मंच है जहां तीनों देश वैश्विक और क्षेत्रीय मुद्दों पर चर्चा करते हैं, और इसकी अगली बैठक तीनों देश मिलकर तय करेंगे।" इसका मतलब साफ है: भारत फिलहाल ‘इंतजार करो और देखो’ की नीति अपना रहा है। देश के रणनीतिक हलकों में यह समझदारी से भरा कदम माना जा रहा है।
क्वाड और RIC: एक साथ संभव?
यही असली सवाल है। QUAD—जिसमें भारत के साथ अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया हैं—का प्राथमिक उद्देश्य चीन के बढ़ते समुद्री व सामरिक प्रभाव को रोकना है। ऐसे में अगर भारत RIC की मेज पर बैठता है, तो क्या यह क्वाड की भावना के खिलाफ नहीं होगा? विश्लेषकों की मानें तो भारत की सबसे बड़ी चुनौती यही है: क्या वह दोनों मंचों पर सक्रिय रहकर संतुलन बना सकता है?
भारत के लिए संतुलन ही कुंजी है
जानकार बताते हैं। भारत को इस परिस्थिति में बेहद संतुलित कूटनीति अपनानी होगी। RIC जैसे मंच पर उपस्थिति भारत को चीन से बातचीत का रास्ता जरूर देती है, लेकिन अंधविश्वास की कोई गुंजाइश नहीं होनी चाहिए। भारत को स्पष्ट करना होगा कि वह किसी भी गुटबंदी का हिस्सा नहीं, बल्कि अपनी शर्तों पर साझेदारी करने वाला एक स्वतंत्र वैश्विक शक्ति है।
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