डिजिटलीकरण की ज़रूरत क्यों?
बिहार में भूमि विवाद लंबे समय से एक गंभीर सामाजिक और कानूनी समस्या रहे हैं। पुराने और अप्राप्य दस्तावेज़ इन विवादों की जड़ में हैं। जब ज़मीन से जुड़े मूल अभिलेख नहीं मिलते, तो अनावश्यक मुकदमेबाज़ी बढ़ती है। यही कारण है कि सरकार ने भूमि रिकॉर्ड को डिजिटल रूप में संग्रहित करने की दिशा में ठोस योजना तैयार की है। इससे अभिलेखों की सुरक्षा सुनिश्चित होगी और नागरिकों को घर बैठे ज़रूरी दस्तावेज़ उपलब्ध हो सकेंगे।
तीन चरणों में होगा काम
पहला चरण - वर्तमान में चल रहा है जिसमें हालिया वर्षों के दस्तावेज स्कैन और अपलोड किए जा रहे हैं।
दूसरा चरण - वर्ष 1948 से 1990 के बीच के लगभग 2.23 करोड़ दस्तावेजों का डिजिटलीकरण किया जाएगा।
तीसरा चरण - 1908 से 1947 तक के 1.44 करोड़ दस्तावेजों को ऑनलाइन अपलोड किया जाएगा।
कैसे हो रहा है डिजिटलीकरण?
डिजिटलीकरण की प्रक्रिया तकनीकी रूप से तीन चरणों में होती है: दस्तावेज़ों को स्कैन किया जाता है, डेटा एंट्री के माध्यम से उनका विवरण डिजिटल रिकॉर्ड में जोड़ा जाता है, और फिर नागरिकों के उपयोग हेतु इसे सार्वजनिक पोर्टल पर उपलब्ध कराया जाता है।
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