जेनरेशन का क्या मतलब है?
फाइटर जेट को वर्गीकृत करने के लिए आमतौर पर 1 से लेकर 5 तक के ‘जेनरेशन’ बनाए गए हैं। हालांकि कई देश 6th ‘जेनरेशन’ फाइटर जेट बनाने पर भी काम कर रहें, इसमें अमेरिका, चीन और रूस का नाम सबसे आगे चल रहा हैं।
पहली जेनरेशन (1940-1950): ये जेट विमानों की शुरुआती तकनीक थी, जैसे मिग-15 और एफ-86। इन विमानों में सुपरसोनिक उड़ान, बेसिक रडार और मिसाइल सिस्टम शुरू हुए।
दूसरी जेनरेशन (1950-1960): बेहतर रडार, एयर-टू-एयर मिसाइल, और अधिक शक्तिशाली इंजन वाले विमान। उदाहरण के लिए, मिग-21।
तीसरी जेनरेशन (1960-1970): मल्टीरोल क्षमता, बेहतर एवियोनिक्स, और टारगेटिंग सिस्टम में सुधार। मिग-23 और एफ-4 फैंटम इसके उदाहरण हैं।
चौथी जेनरेशन (1980-2000): ये आधुनिक फाइटर जेट हैं, जिनमें एडवांस्ड एवियोनिक्स, फ्लाई-बाय-वायर सिस्टम, और रडार क्रॉस सेक्शन कम करने वाली स्टीथ तकनीक होती है। एफ-16, मिग-29, सुखोई-30 चौथी जेनरेशन के उदाहरण हैं।
पांचवीं जेनरेशन (2000 से आगे): ये अब तक के सबसे उन्नत विमान हैं, जिनमें सुपरक्रूजिंग (सुपरसोनिक स्पीड पर बिना आफ्टरबर्नर के उड़ान), पूरी तरह की स्टीथ टेक्नोलॉजी, एडवांस्ड सेंसर फ्यूजन और नेटवर्क सेंटर्ड ऑपरेशन की सुविधा होती है। एफ-35, एफ-22 रैप्टर और रूस का सुखोई-57 इसके उदाहरण हैं।
भारत कहां है?
भारत की वायुसेना ने दशकों से चौथी जेनरेशन के कई विमानों को अपनाया है। मिग-29, सुखोई-30 एमकेआई, मिराज 2000 और तेजस जैसे विमान भारतीय वायुसेना के मुख्य स्तंभ हैं। भारत ने भारतीय निर्मित हल्के लड़ाकू विमान तेजस को भी विकसित किया है, जो चौथी जेनरेशन की श्रेणी में आता है।
वहीं, भारत अपनी पहली पांचवीं जेनरेशन फाइटर जेट विकसित करने के लिए ‘एयरडिफेंस कॉम्बैट एयरक्राफ्ट’ (एमकेए) परियोजना पर काम कर रहा है। भारत को इन विमानों के उत्पादन और रखरखाव में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।
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