8वां वेतन आयोग: केंद्र पर पड़ेगा 1.8 लाख करोड़ का बोझ?

नई दिल्ली। आठवां वेतन आयोग आने वाले वर्षों में देश की आर्थिक और सामाजिक संरचना पर गहरा प्रभाव डाल सकता है। केंद्र सरकार के एक करोड़ से अधिक कर्मचारियों और पेंशनभोगियों की निगाहें इस आयोग पर टिकी हैं, जो 2026 या वित्तीय वर्ष 2027 से लागू हो सकता है। यदि एम्बिट कैपिटल की हालिया रिपोर्ट को माना जाए, तो इस वेतन संशोधन से केंद्र सरकार पर करीब 1.8 लाख करोड़ रुपये का वित्तीय बोझ पड़ सकता है। लेकिन यह खर्च महज एक बोझ नहीं, बल्कि आर्थिक गतिविधियों को तेज करने वाला निवेश भी हो सकता है।

हर दस साल में एक नई समीक्षा की परंपरा

सरकारी वेतन संरचना में बदलाव का यह सिलसिला नया नहीं है। हर दस वर्षों में केंद्र सरकार वेतन आयोग गठित करती है, जिससे कर्मचारियों की आय को जीवन-यापन की लागत, महंगाई और सामाजिक परिस्थितियों के अनुरूप समायोजित किया जाता है। सातवां वेतन आयोग जनवरी 2016 में लागू हुआ था, जिसने न सिर्फ वेतन बल्कि भत्तों और पेंशन ढांचे में भी व्यापक परिवर्तन किए थे। अब उसी राह पर आठवें वेतन आयोग की तैयारी है।

फिटमेंट फैक्टर: बदलाव का आधार स्तंभ

आठवें वेतन आयोग की चर्चाओं में फिटमेंट फैक्टर एक अहम शब्द बनकर उभरा है। यह दरअसल वह गुणांक है, जिसके आधार पर पुराने मूल वेतन को नए वेतनमान में बदला जाता है। रिपोर्टों के अनुसार, इस बार फिटमेंट फैक्टर 1.83 से 2.46 के बीच हो सकता है। इसका सीधा अर्थ है कि वर्तमान में 18,000 रुपये की न्यूनतम सैलरी बढ़कर 32,940 से 44,280 रुपये तक जा सकती है। इससे न केवल कर्मचारियों की क्रय शक्ति बढ़ेगी, बल्कि महंगाई भत्ते (DA) और पेंशन भुगतान भी नए मानकों के अनुरूप होंगे।

केवल खर्च नहीं, आर्थिक प्रोत्साहन भी

जहां एक ओर इस वेतन संशोधन से सरकारी खजाने पर दबाव बढ़ेगा, वहीं दूसरी ओर यह घरेलू खपत में तेजी लाने का माध्यम भी बन सकता है। जब कर्मचारियों की आय बढ़ेगी, तो वे स्वास्थ्य सेवाओं, आवास, शिक्षा, और उपभोग वस्तुओं पर अधिक खर्च कर सकेंगे। इससे ग्रामीण और शहरी अर्थव्यवस्था, दोनों को बल मिलेगा। खुदरा बिक्री, कंज्यूमर गुड्स और हाउसिंग सेक्टर में सकारात्मक असर देखा जा सकता है।

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