प्रोजेक्ट 77: परमाणु पनडुब्बियों का नया युग
‘प्रोजेक्ट 77’ भारतीय नौसेना के लिए एक क्रांतिकारी पहल है। यह सिर्फ नई परमाणु हमलावर पनडुब्बियां बनाने की योजना नहीं है, बल्कि इसके साथ एक नया मानवरहित और मानवयुक्त ऑपरेशनल कॉन्सेप्ट भी जुड़ा है। इन पनडुब्बियों के साथ उन्नत तकनीक से लैस मानवरहित अंडरवॉटर वाहन (UUVs) तैनात किए जाएंगे, जो समुद्री युद्ध में जासूसी, टोही और खुफिया कार्यों को अंजाम देंगे।
‘जलकापु-XLUUV’: समुद्र की गहराइयों का नया जासूस
‘जलकापु-XLUUV’ एक अत्याधुनिक मानवरहित प्लेटफॉर्म है जिसे समुद्र की गहराइयों में दुश्मन की गतिविधियों पर नजर रखने, पनडुब्बियों और सतही जहाजों से मुकाबला करने और खतरनाक समुद्री सुरंगों का पता लगाने के लिए डिज़ाइन किया गया है। इसमें फ्लैंक एरे सोनार, टोएड एरे सोनार और इलेक्ट्रो-ऑप्टिकल/इन्फ्रारेड कैमरों जैसे उन्नत सेंसर लगे होंगे। ये वाहन या तो स्वतंत्र रूप से कार्य कर सकते हैं या भारतीय परमाणु पनडुब्बियों के नियंत्रण में रहकर मिशन को अंजाम देंगे, जिससे खतरे वाले इलाकों में नौसेना की पहुंच बढ़ेगी और मानव जीवन का जोखिम कम होगा।
‘प्रोजेक्ट 75 अल्फा’ से मजबूत नींव
‘प्रोजेक्ट 77’ वास्तव में ‘प्रोजेक्ट 75 अल्फा’ की अगली कड़ी है, जो 1990 के दशक के अंत में समुद्री सुरक्षा को सुदृढ़ करने के लिए शुरू हुई थी। इस योजना का उद्देश्य चीन सहित क्षेत्रीय समुद्री चुनौतियों का मुकाबला करना है। 2015 में इस प्रोजेक्ट को गति मिली और 2024 में इसके तहत छह परमाणु पनडुब्बियों के निर्माण को अंतिम मंजूरी मिली। इन पनडुब्बियों का वजन लगभग 10,000 टन होगा और ये 30 समुद्री मील प्रति घंटे की रफ्तार से चल सकेंगी। साथ ही, इनमें 95% तक स्वदेशी सामग्री का इस्तेमाल होगा, जो ‘आत्मनिर्भर भारत’ की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
वैश्विक स्तर पर भारत की बढ़ती भूमिका
विश्व स्तर पर नौसेना युद्ध में मानवरहित अंडरवॉटर वाहनों की भूमिका तेजी से बढ़ रही है। अमेरिका, रूस जैसे देशों ने भी ऐसे बड़े UUVs पर काम शुरू किया है। भारत की यह पहल न केवल क्षेत्रीय सुरक्षा को मजबूत करेगी, बल्कि उसे वैश्विक समुद्री शक्ति के रूप में स्थापित करने में भी मदद करेगी। ‘प्रोजेक्ट 77’ भारतीय नौसेना को तकनीकी रूप से और सामरिक दृष्टि से अत्याधुनिक बनाएगा, जिससे वह भविष्य के समुद्री युद्धों में एक निर्णायक भूमिका निभा सकेगा।
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