ब्रह्मोस-2 पर दुनिया की नजरें, अमेरिका-चीन भी सतर्क

नई दिल्ली। भारत की रक्षा तकनीक एक नई ऊंचाई की ओर अग्रसर है। एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत और रूस मिलकर अगली पीढ़ी की हाइपरसोनिक क्रूज़ मिसाइल ब्रह्मोस-2 के विकास को तेज़ी से आगे बढ़ा रहे हैं। यह मिसाइल न केवल भारत की वर्तमान सुपरसोनिक क्षमताओं को नई दिशा देती है, बल्कि वैश्विक स्तर पर हाइपरसोनिक रेस में भारत की मज़बूत मौजूदगी को भी स्थापित करती है।

ब्रह्मोस-2: रफ्तार ही इसकी पहचान है

ब्रह्मोस-2 को लेकर सबसे ज़्यादा चर्चा इसकी 9 MACH (लगभग 11,000 किमी/घंटा) की अनुमानित गति को लेकर है। इतनी रफ्तार के साथ यह एक मिनट से भी कम समय में दुश्मन के अहम लक्ष्यों को भेदने में सक्षम होगी। मौजूदा ब्रह्मोस मिसाइल की तुलना में यह तीन गुना तेज़ होगी, जो पहले ही अपनी मारकता और विश्वसनीयता के लिए जानी जाती है।

हाइपरसोनिक तकनीक और स्टील्थ विशेषताएं

ब्रह्मोस-2 में स्क्रैमजेट इंजन तकनीक का उपयोग किया जा रहा है, जो वायुमंडलीय ऑक्सीजन का इस्तेमाल कर लंबे समय तक हाइपरसोनिक गति बनाए रख सकता है। इसकी डिज़ाइन विशेष रूप से इस तरह तैयार की जा रही है कि यह कम ऊंचाई पर उड़ान भर सके और दुश्मन के रडार से बच सके।

इसमें एडवांस स्टील्थ कोटिंग, शार्प कॉम्बैट मैनूवरिंग और सटीक मार्गदर्शन प्रणाली जैसे फीचर्स इसे युद्धक्षेत्र में लगभग अदृश्य और बेहद खतरनाक बना देते हैं। ऐसे में शत्रु को इसका पता लगाना और उससे बचाव करना दोनों ही लगभग असंभव होंगे।

चीन के DF-17 को टक्कर, शक्ति संतुलन में भारत को बढ़त

चीन की DF-17 हाइपरसोनिक मिसाइल लंबे समय से एशिया में शक्ति संतुलन की दिशा तय कर रही थी, लेकिन अब ब्रह्मोस-2 के आने से वह समीकरण बदल सकते हैं। DF-17 की तुलना में ब्रह्मोस-2 की मल्टी-प्लेटफॉर्म लॉन्च क्षमता (जमीन, हवा और समुद्र से प्रक्षेपण) और लगभग 1,500 किमी की रेंज इसे कहीं ज़्यादा बहुआयामी बनाती है। ब्रह्मोस-2 केवल एक तकनीकी उपलब्धि नहीं, बल्कि यह भारत की रणनीतिक नीति का हिस्सा है।

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