रूस का भारत को 'हाईटेक' हथियारों का ऑफर

नई दिल्ली। हाल ही में रूस द्वारा भारत को दिए गए सैन्य प्रस्ताव ने रक्षा विशेषज्ञों और कूटनीतिक हलकों में खलबली मचा दी है। रूस ने भारत को अत्याधुनिक हथियारों की पेशकश की है, जिनमें सुखोई Su-57 स्टील्थ फाइटर जेट, Su-35 लड़ाकू विमान, लंबी दूरी की R-37 एयर-टू-एयर मिसाइल और S-500 एयर डिफेंस सिस्टम शामिल हैं। इन सभी प्रणालियों की गिनती रूस की सबसे उन्नत सैन्य तकनीकों में होती है।

भारत और रूस के बीच दशकों पुराना रक्षा सहयोग रहा है। ब्रह्मोस मिसाइल, T-90 टैंक, और Su-30MKI जैसे प्रोजेक्ट इसकी मिसाल हैं। लेकिन वर्तमान हालात पहले जैसे नहीं हैं। यूक्रेन युद्ध के चलते रूस पर पश्चिमी प्रतिबंध हैं और वैश्विक कूटनीति में बदलाव आया है। ऐसे में भारत के लिए यह तय करना मुश्किल हो गया है कि वह इस पेशकश को स्वीकार करे या नहीं।

क्या खास है इस पेशकश में?

1. Su-57 स्टील्थ फाइटर जेट:

यह रूस का पहला पांचवीं पीढ़ी का स्टील्थ मल्टीरोल लड़ाकू विमान है, जो न केवल हवाई लड़ाई बल्कि ग्राउंड अटैक और समुद्री ऑपरेशन में भी दक्ष है। भारत के लिए यह तकनीकी छलांग साबित हो सकता है, खासकर चीन की बढ़ती वायु शक्ति को देखते हुए।

2. R-37 मिसाइल:

यह हवा से हवा में मार करने वाली लंबी दूरी की मिसाइल है जो 300 किलोमीटर से भी अधिक दूरी तक निशाना साध सकती है। यह भारत की वायु रक्षा क्षमता को एक नया आयाम दे सकती है।

3. S-500 एयर डिफेंस सिस्टम:

S-400 के अपग्रेडेड वर्जन के तौर पर S-500 को हाइपरसोनिक मिसाइलों को भी रोकने में सक्षम माना जाता है। इसकी रेंज और प्रतिक्रिया क्षमता भारत की वायु सीमाओं की सुरक्षा को और पुख्ता कर सकती है।

भारत की हिचक क्यों?

भारत की झिझक के कई कारण हैं। सबसे बड़ा कारण है भूराजनीतिक दबाव। अमेरिका और पश्चिमी देश भारत पर रूस से दूर रहने का परोक्ष दबाव बना रहे हैं। इसके अलावा भारत स्वदेशी रक्षा उत्पादन को भी प्राथमिकता दे रहा है। DRDO द्वारा विकसित तेजस फाइटर, आकाश मिसाइल और आने वाला AMCA प्रोजेक्ट भारत के आत्मनिर्भरता अभियान की नींव हैं।

रणनीतिक संतुलन की तलाश

भारत के लिए यह एक नाजुक संतुलन साधने जैसा है। एक ओर वह अमेरिका, फ्रांस और इज़राइल जैसे देशों से रक्षा सहयोग को मजबूत कर रहा है, वहीं दूसरी ओर रूस के साथ दशकों पुराने भरोसे को भी पूरी तरह छोड़ना आसान नहीं है। विशेषज्ञ मानते हैं कि भारत को दीर्घकालिक रणनीति के तहत फैसले लेने होंगे। अगर रूस की तकनीक वास्तव में भारत की रक्षा जरूरतों को पूरा करती है और इसमें लॉजिस्टिक सपोर्ट की स्पष्ट योजना है, तो सहयोग पर विचार किया जा सकता है।

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