अमेरिका ने भारत के खिलाफ छेड़ी आर्थि‍क जंग!

नई दिल्ली। अंतरराष्ट्रीय राजनीति में हर कदम एक शतरंज की चाल जैसा होता है। यदि सोच-समझकर उठाया गया तो विजयी बनाता है, वरना मात तय है। भारत के सामने इस वक्त कुछ ऐसा ही संकट खड़ा है। अमेरिका ने भारत पर बड़ा आर्थिक हमला करते हुए 50% तक टैरिफ बढ़ा दिया है, जिसमें 25% शुल्क विशेष रूप से रूस से तेल खरीदने के कारण लगाया गया है। यह फैसला 27 अगस्त से प्रभावी हो जायेगा और इसका सीधा असर भारत के निर्यातकों और वैश्विक व्यापार संबंधों पर पड़ने वाला है।

टैरिफ वार: भारत की आर्थिक मुश्किलें बढ़ीं

अमेरिका द्वारा लगाए गए नए टैरिफ से भारतीय सामान की कीमत अमेरिकी बाजारों में तेजी से बढ़ जाएगी, जिससे भारतीय निर्यातकों को तगड़ा झटका लगेगा। खासकर टेक्सटाइल, ऑटो पार्ट्स, दवाइयों और स्टील जैसे क्षेत्रों में गिरावट की आशंका है। 

बता दें की सरकार ने इस मुद्दे को गंभीरता से लेते हुए 26 अगस्त को उच्च स्तरीय बैठक बुलाई है, जिसमें SMEs और प्रमुख निर्यात क्षेत्रों को राहत देने की संभावनाएं तलाशी जा रही हैं। लेकिन सवाल सिर्फ आर्थिक नहीं, रणनीतिक भी है। भारत अब उस मोड़ पर खड़ा है जहाँ हर कदम उसकी अंतरराष्ट्रीय साख और दीर्घकालीन हितों को प्रभावित कर सकता है।

चीन की ओर झुकाव: रणनीति या मजबूरी?

अमेरिका के इस आक्रामक रुख के बीच भारत का चीन के साथ रिश्ते सुधारने की कोशिश करना किसी कूटनीतिक बदलाव का संकेत देता है। हाल ही में चीनी विदेश मंत्री वांग यी का भारत दौरा और प्रधानमंत्री मोदी, जयशंकर तथा डोभाल से मुलाकातें इस दिशा में एक नया संदेश देती हैं।

हालांकि, यह घटनाक्रम कई विशेषज्ञों को चिंता में डाल रहा है। स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के सीनियर फेलो सुमित गांगुली ने स्पष्ट तौर पर कहा है कि चीन पर दांव लगाना भारत की भारी भूल हो सकती है। उनके अनुसार, भारत और चीन के बीच सहयोग की कोई ठोस नींव नहीं है। सीमा विवाद से लेकर आर्थिक प्रतिस्पर्धा और पाकिस्तान से चीन की नज़दीकी तक, मतभेदों की एक लंबी सूची है।

ट्रंप की सख्ती और भारत की रणनीतिक स्वायत्तता

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा लगाए गए टैरिफ सिर्फ व्यापारिक नहीं, बल्कि राजनीतिक संदेश भी हैं। अमेरिका, भारत पर रूस के साथ ऊर्जा समझौतों को लेकर दबाव बना रहा है और इसे यूक्रेन युद्ध में अप्रत्यक्ष समर्थन मानता है। हालांकि भारत ने हमेशा अपने फैसलों को रणनीतिक स्वायत्तता के आधार पर सही ठहराया है।

पूर्व विदेश सचिव कंवल सिब्बल का मानना है कि यह टकराव भारत को और अधिक आत्मनिर्भर बनने की दिशा में प्रेरित करेगा। उनका यह भी कहना है कि टैरिफ का असर समय के साथ कम हो जाएगा, बशर्ते भारत अपने व्यापारिक विकल्पों को और अधिक विविध करे।

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