हाइपरसोनिक मिसाइलों में रूस का दबदबा, भारत भी रेस में!

नई दिल्ली। हाइपरसोनिक मिसाइल टेक्नोलॉजी अब महाशक्तियों के बीच नई होड़ का केंद्र बन गई है। रूस ने अपनी हाइपरसोनिक मिसाइलों विशेषकर Avangard और Kinzhal की सफलता के साथ इस क्षेत्र में स्पष्ट बढ़त बना ली है। अमेरिका जहां इस तकनीक को लेकर गहराई से चिंतित है, वहीं भारत भी चुपचाप लेकिन प्रभावी ढंग से इस रेस में अपनी मौजूदगी दर्ज करा रहा है।

रूस की बढ़त क्यों है खास?

रूस ने 2018 में सार्वजनिक रूप से घोषणा की थी कि उसने Avangard हाइपरसोनिक ग्लाइड व्हीकल को तैनात कर दिया है, जो 27 मैक की रफ्तार से लक्ष्य को भेदने में सक्षम है। इसके अलावा Kinzhal मिसाइल को यूक्रेन युद्ध के दौरान उपयोग कर यह साबित किया गया कि रूस इस तकनीक को सिर्फ विकसित ही नहीं कर रहा, बल्कि ऑपरेशनल स्तर पर इस्तेमाल भी कर चुका है।

इस तकनीक की सबसे खतरनाक बात यह है कि पारंपरिक मिसाइल डिफेंस सिस्टम इनका सामना करने में असमर्थ हैं, क्योंकि ये मिसाइलें बेहद तेज गति से और अनियमित रास्तों से चलती हैं, जिससे इन्हें ट्रैक करना मुश्किल हो जाता है।

अमेरिका की चिंता और प्रतिक्रिया

रूस की हाइपरसोनिक क्षमताओं को लेकर अमेरिका में रणनीतिक हलकों में बेचैनी साफ देखी जा सकती है। अमेरिकी रक्षा विभाग (पेंटागन) ने हाल के वर्षों में हाइपरसोनिक प्रोग्राम्स पर अरबों डॉलर खर्च किए हैं, लेकिन अभी तक उसे ऐसी कोई तकनीकी सफलता नहीं मिली है जो रूस के स्तर की हो। इस दौड़ में चीन भी तेजी से आगे बढ़ रहा है, और अमेरिका को अब दो मोर्चों पर जवाब देना पड़ रहा है।

भारत की स्थिति-धीरे मगर स्थिर कदम

भारत पिछले कुछ वर्षों से हाइपरसोनिक टेक्नोलॉजी डेमोंस्ट्रेटर व्हीकल (HSTDV) पर काम कर रहा है। 2020 में DRDO ने सफलतापूर्वक इसका परीक्षण किया था, जिससे यह साबित हुआ कि भारत भी इस तकनीक को आत्मनिर्भर रूप से विकसित करने की दिशा में आगे बढ़ चुका है। हाल ही भारत ने हाइपरसोनिक मिसाइल का सफल टेस्ट भी किया।

इसके अलावा भारत रूस के साथ मिलकर ब्रह्मोस-II मिसाइल पर भी काम कर रहा है, जो एक हाइपरसोनिक क्रूज़ मिसाइल होगी। इसकी रफ्तार 6-7 मैक तक होने की संभावना है। यह भारत को रणनीतिक बढ़त देने में सक्षम हो सकती है।

0 comments:

Post a Comment